जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

जैन धर्म के धर्मोपदेशक तीर्थंकर या जिन कहलाते हैं | जैन शब्द की उत्पत्ति जिन शब्द से हुई है | जिन शब्द संस्कृत की जि धातु से बना है, जि अर्थ है – जीतना , इसप्रकार जिन का अर्थ हुआ विजेता या जीतने वाला और जैन धर्म का अर्थ हुआ विजेताओं का धर्म | जैन धर्म के अनुसार जिन वें हैं जिन्होंने अपने निम्नकोटि के स्वभाव या मनोवेगों पर विजय प्राप्त करके स्वयं को वश में कर लिया हो | दूसरे शब्दों में जिन वें हैं जिन्होंने समस्त मानवीय वासनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है | जिन के अनुयायी जैन कहलाते है | तीर्थंकर का अर्थ है मोक्ष मार्ग के संस्थापक | जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है, जिनमे केवल तेइसवें और चौबीसवें तीर्थंकर की ही ऐतिहासिकता सिद्ध हो पाती है | जैन धर्म जरुर पढ़ें, टच करें- ➽  ब्राह्मण विरोधी राजनीति के प्रतीक करुणानिधि से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार है - 1. ऋषभदेव (आदिनाथ), 2. अजितनाथ, 3. सम्भवनाथ, 4. अभिनन्दननाथ, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभनाथ, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. च...

सन्धि Joining

सामान्यतः सन्धि का अर्थ है - मेल, जोड़ या योग | "जब दो शब्द आपस में मिलते है तो पहले पद की अन्तिम ध्वनि व दूसरे शब्द की पहली ध्वनि के मेल से वर्णों की ध्वनियों में जो परिवर्तन होता है, उसे सन्धि कहते है |" 
सरल शब्दों में "जब दो शब्दों के मेल से एक नया शब्द बनता है, तो इसे सन्धि कहते है |" या "दो वर्णों के पारस्परिक मेल से जो विकार या परिवर्तन उत्पन्न होता है, उसे सन्धि कहा जाता है |"                                                             
हिन्दी में सन्धि केवल 'तत्सम' शब्दों में होती है, 'तदभव' शब्दों में नही | अर्थात् सन्धि के नियम संस्कृत के तत्सम शब्दों पर ही लागू होते है |
उदाहरण : 
विद्या + आलय = विद्यालय    
सत् + जन  = सज्जन      
दिक्  + गज  = दिग्गज      
देव + इन्द्र  = देवेन्द्र
जगत् + नाथ  = जगन्नाथ 

सन्धि के तीन प्रकार है - 
(1) स्वर सन्धि     (स्वर + स्वर )
(2) व्यंजन सन्धि (व्यंजन + स्वर/व्यंजन)
(3) विसर्ग सन्धि   (विसर्ग + स्वर/व्यंजन)
                               
  स्वर सन्धि 

स्वर सन्धि को समझने से पहले हम 'स्वर' को समझेंगें |
भाषा की सबसे छोटी ध्वनि - इकाई 'वर्ण' है | हिन्दी में 52 वर्ण हैं | 
वर्ण के दो प्रकार है -  (1) स्वर (2) व्यंजन | 

स्वर : "जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु बिना किसी अवरोध के बाहर निकल जाती है, उन ध्वनियों को स्वर कहा जाता है |"     

व्यंजन : "जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु निकलने में किसी न किसी प्रकार का अवरोध होता है, उन ध्वनियों को व्यंजन कहा जाता है |" 

दूसरे शब्दों में "जिन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, उन्हें व्यंजन कहते है |                                                        

हिन्दी में 11 स्वर है | ये है - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ |
मूल स्वर चार है - अ, इ, उ, ऋ | इन्हे ह्रस्व स्वर कहते है | इन्हे ह्रस्व अ, ह्रस्व इ, ह्रस्व उ, ह्रस्व ऋ कहा जाता है |
ह्रस्व स्वरों के मेल (जोड़) से दीर्घ स्वरों का निर्माण होता है |
उदाहरण :     अ + अ = आ  
                    इ + इ = ई 
                    उ + उ = ऊ   
                    ऋ  + ऋ  = ऋृृ  
                    अ + इ = ए  
                    अ + ए = ऐ     
                    अ + उ = ओ  
                    अ + ओ = औ 

यहाँ आ, ई, ऊ, ऋृृ ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ स्वर है | दीर्घ स्वर के उच्चारण में ह्रस्व समय से दुगना समय लगता है |


अब हम स्वर सन्धि को समझते है | 


स्वर सन्धि : 
"एक स्वर के बाद दूसरे स्वर के आने के कारण जो परिवर्तन होता है, वह स्वर सन्धि के अन्तर्गत आता है |"
 दूसरे शब्दों में "जब दो स्वरों के मेल से नया शब्द बनता है तो यह स्वर सन्धि होती है |" अथवा "स्वर का स्वर के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर सन्धि कहते है |" 

 स्वर सन्धि के प्रकार
स्वर सन्धि के चार प्रकार है - 
 (1) दीर्घ सन्धि 
 (2) गुण सन्धि 
 (3) वृद्धि सन्धि 
 (4)  यण सन्धि 

दीर्घ सन्धि : "ह्रस्व (अ,इ,उ) अथवा दीर्घ (आ,ई,ऊ) के बाद क्रमशः ह्रस्व (अ,इ,उ) या दीर्घ (आ,ई,ऊ) आ जाये तो दोनों मिलकर दीर्घ (आ/ई/ऊ) हो जाते है |"

 दूसरे शब्दों में "एक ही स्वर (अर्थात् सवर्ण स्वर/समान स्वर)  के दो रूप (अर्थात् ह्रस्व या दीर्घ) एकदूसरे के बाद आ जाये, दोनों जुडकर दीर्घ स्वर हो जाता है |"
उदाहरण : 

अ + अ = आ        

राम + अवतार = रामावतार
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त 
शरण + अर्थी = शरणार्थी 
नयन + अभिराम = नयनाभिराम 
मुर + अरि = मुरारि 
वेद + अंत = वेदांत
वेद + अंग  = वेदांग 
सत्य + अर्थी  = सत्यार्थी 
गीत + अंजली = गीतांजली 
राम + अनुज =  रामानुज 
कृष्ण + अवतार  = कृष्णावतार 
चरण + अमृत = चरणामृत 
दैत्य + अरि = दैत्यारि
परम + अर्थ = परमार्थ 
स + अवधान  = सावधान 
धन + अर्थी = धनार्थी 
देह + अंत = देहांत
मत + अनुसार = मतानुसार 
दीप + अवली = दीपावली 

अ + आ = आ

भोजन + आलय  = भोजनालय
शिव + आलय = शिवालय 
कुश + आसन = कुशासन
परम + आवश्यक = धनार्थी 
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा 
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
 + आकार = साकार 
सु + आसन = सुशासन
परम + आनंद = परमानन्द 
हिम + आलय = हिमालय
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय  
परम + आत्मा = परमात्मा  
राम + आधार = रामाधार 
छात्र + आवास = छात्रावास      
देव + आनद =  देवानंद 
प्र + आरम्भ = प्रारम्भ 
दीप + आधार = दीपाधार 

आ + अ = आ

विद्या + अर्थी  = विद्यार्थी 
विद्या  + अध्ययन  = विद्याध्ययन     
माया + अधीन  = मायाधीन  
कदा  + अपि  = कदापि          
व्यवस्था  + अनुसार  = व्यवस्थानुसार      
सीमा  + अंत  = सीमांत 
रेखा  + अंश  = रेखांश 
आज्ञा + अनुपालन  = आज्ञानुपालन 
वर्षा + अंत  = वर्षान्त 
दीक्षा  + अंत  =  दीक्षांत 
सेना + अध्यक्ष  = सेनाध्यक्ष    
विद्या  + अनुराग  =  विद्यानुराग  
तथा  + अपि  = तथापि 
युवा  + अवस्था  = युवावस्था 
सभा  + अध्यक्ष  = सभाध्यक्ष 
द्वारका + अधीश = द्वारकाधीश 
कक्षा + अध्यापक  = कक्षाध्यापक                                                                                                                                                                   
आ + आ = आ

महा + आत्मा = महात्मा
विद्या + आलय = विद्यालय
वार्ता + लाप = वर्तालाप
आत्मा + आनन्द  = आत्मानन्द 
महा + आशय = महाशय
प्रतीक्षा + आलय = प्रतीक्षालय  
चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय  
दया + आनन्द  = दयानन्द 
माया + आचरण = मायाचरण 
महा + आत्मा  = महात्मा 
श्रद्धा + आलु  = श्रद्धालु 
गदा + आघात  = गदाघात 
दया + नन्द = दयानन्द 
विद्या  + आनन्द  = विद्यानन्द 
कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी 

इ + इ = ई

रवि + इन्द्र = रवीन्द्र 
कवि + इन्द्र = कवीन्द्र 
अभि + इष्ट = अभीष्ट 
अति + इव = अतीव 
गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
मुनि + इन्द्र = मुनीन्द्र  
अधि + इन = अधीन
प्रति + इति = प्रतीति 
क्षिति + इन्द्र = क्षितीन्द्र  

इ + ई  = ई

कवि + ईश = कपीश 
अभि + ईप्सा = अभीप्सा 
गिरि + ईश = गिरीश
रवि + ईश = रवीश 
अधि + ईक्षक = अधीक्षक 
क्षिति + ईश = क्षितीश
हरि + ईश = हरीश  
अधि + ईश्वर = अधीश्वर 
परि + ईशा = परीक्षा 
वारि + ईश = वारीश
कवि + ईश = कवीश
परि + ईक्षा = परीक्षा 

ई + ई = ई

पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश 
जानकी + ईश = जानकीश
रजनी + ईश = रजनीश 
नदी + ईश = नदीश (समुद्र)
सती + ईश = सतीश 
नारी + ईश = नारीश 
पृथ्वी + ईश्वर = पृथ्वीश्वर 
मही + ईश = महीश 
लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश 
गौरी + ईश = गौरीश 
श्री + ईश = श्रीश 

उ + उ = ऊ

सु + उक्ति = सूक्ति 
भानु + उदय = भानुदय 
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश 
वधु + उत्सव = वधुत्सव 
सु + उक्ति = सूक्ति 
लघु + उत्तर = लघूत्तर
कटु + उक्ति = कटूक्ति 
विधु + उदय = विधूदय 
साधु + उपदेश = साधूपदेश 

उ + ऊ = ऊ

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि 
भानु + ऊर्जा = भानूर्जा 
धातु + ऊष्मा = धातूष्मा 
बहु + ऊर्ज = बहुर्ज 
मधु + ऊष्मा = मधूष्मा
सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूर्मी 
साधु + ऊर्जा = साधूर्जा
बहु + ऊर्ध्व = बहुर्ध्व
भानु + ऊर्ध्व = भानुर्ध्व    

ऊ  + उ = ऊ

स्वयंभू + उदय = स्वयंभूदय
चमू + उत्तम = चमूत्तम  
भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग 
वधू + उपालम्भ = वधूपालम्भ 
वधू + उत्सव = वधूत्सव 
वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
भू + उद्धार = भूद्धार 

ऊ + ऊ = ऊ 

भू + ऊष्मा = भूष्मा 
चमू + ऊर्जा = चमूर्जा 
सरजू + ऊर्मि = सरयूर्मि  

ऋ + ऋ = ऋ

पितृ + ऋण = पितृण 
मातृ + तृण = मातृण 
भ्रातृृ + ऋद्धि =   भ्रातृृद्धि

ये भी देखें -
*  Important facts of history in hindi
*  Important facts of Indian Polity
*  ENGLISH : HOMONYMS : Most Important Facts
*  Important facts of general science
*  Indian History
*  Indian and World Geography
*  Current Affairs

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