दर्शन की शाखाएँ : Branches of Philosophy
दर्शन का
अध्ययन-क्षेत्र व विषयवस्तु : Scope and Subject-Matter of Philosophy
|
scope and subject matter of philosophy |
दर्शन का अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है | वास्तव में दर्शन के अध्ययन क्षेत्र में सम्पूर्ण सृष्टि या ब्रह्माण्ड और उसकी सम्पूर्ण क्रियाओं की वास्तविक खोज शामिल है | दूसरे शब्दों में सम्पूर्ण मानव जीवन को दर्शन का अध्ययन क्षेत्र या दर्शन की शाखाएँ माना जा सकता है | अतीतकाल में दर्शन में धर्म, साहित्य, कला, इतिहास, विज्ञान आदि सभी विषय आते थे | लेकिन आधुनिक काल में दर्शन का अध्ययन क्षेत्र या शाखाओं का विभाजन समस्याओं के आधार पर किया गया है | इस दृष्टि से दर्शन का अध्ययन क्षेत्र या शाखाएँ निम्नलिखित है |
1. तत्व मीमांसा (Metaphysics)
2. ज्ञान मीमांसा (Epistemology)
3. मूल्य मीमांसा (Axiology)
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1. तत्व मीमांसा Metaphysics
तत्व मीमांसा
(तत्व-विज्ञान) को अंग्रेजी भाषा में मेटाफिजिक्स (Metaphysics) कहते है, जो दो ग्रीक शब्दों मेटा (Meta) और फिजिक्स (Physics) के मिलने से बना है | मेटा (Meta) का अर्थ होता है – परे (Boyand) और फिजिक्स (Physics) का अर्थ होता है - प्रकृति (Nature) | इसप्रकार मेटाफिजिक्स (Metaphysics) का अर्थ हुआ – ‘प्रकृति से परे’ अर्थात् ‘प्रकृति से परे क्या
है ?’ |
अतः इस खोज का अध्ययन करने वाले शास्त्र या विषय
को ही तत्व मीमांसा (Metaphysics) कहते है | सर्वप्रथम metaphysics शब्द का प्रयोग ‘एन्ड्रोनिकस’ (Andronicus) नामक विद्वान [*एन्ड्रोनिकस, अरस्तु के ग्रन्थों के
सम्पादक थे | अरस्तु के ग्रन्थों के सम्पादन में एन्ड्रोनिकस
ने अरस्तु की कुछ दार्शनिक रचनाओं को metaphysics नाम से अलग स्थान दिया था |] ने किया था |
तत्व मीमांसा में साधारणतः
ईश्वर, आत्मा और जगत् की चर्चा होती है | तत्व मीमांसा का कार्य सदैव वास्तविक तत्व की
खोज करना है | इसके अन्तर्गत ईश्वर, आत्मा, प्रकृति, मनुष्य, सृष्टि, जन्ममरण आदि की वास्तविकता को जानने का प्रयास
किया जाता है |
तत्व मीमांसा के अन्तर्गत
निम्न विषयों का अध्ययन होता है –
1. ईश्वर सम्बन्धी तत्व
ज्ञान (Theology)
2. आत्मा सम्बन्धी तत्व
ज्ञान (Metaphysics
of Soul)
3. सृष्टि (विश्व) शास्त्र
(Cosmology)
4. सत्ता शास्त्र (Ontology)
1. ईश्वर सम्बन्धी तत्व ज्ञान Theology
‘Theology’ शब्द Theo और Logos से मिलाकर बना है, जहाँ theo का अर्थ है - ईश्वर (God) और Logos का अर्थ है - विज्ञान (Science) या अध्ययन (study) | इसप्रकार Theology का अर्थ हुआ 'ईश्वर-विद्या' (God-Study or study of God) या ईश्वर-विज्ञान (God-Science or science of God) | अन्तर्गत ईश्वर से
सम्बन्धित चिन्तन किया जाता है | जैसे – ईश्वर का अस्तित्व है या नही ? यदि है, तो उसका क्या प्रमाण है ? उसका स्वरुप क्या है ? यदि नही, तो क्यों नही ? ईश्वर व जगत् में क्या और कैसा सम्बन्ध है ? आदि |
2. आत्मा सम्बन्धी तत्व ज्ञान Metaphysics of Soul
इसमे मुख्य रूप से आत्मा से
सम्बन्धित चिन्तन किया जाता है | जैसे आत्मा का अस्तित्व, उसका स्वरुप, आत्मा व शरीर का सम्बन्ध आदि |
3. सृष्टि (विश्व) शास्त्र Cosmology
सृष्टि-शास्त्र या
विश्व-शास्त्र में विश्व (Universe) की उत्पत्ति, उसका स्वरुप, उसका विकास आदि विषयों से सम्बन्धित चिन्तन किया जाता है |
4. सत्ता शास्त्र Ontology
‘Ontology’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जर्मन दार्शनिक सी.
वुल्फ (C. Wolff) ने किया था | सत्ता शास्त्र (Ontology)
में सत्ता का तात्पर्य परम
सत्ता (Ultimate reality) से है | इसके अन्तर्गत परम सत्ता और उसका अस्तित्व (Existance) से सम्बन्धित चिन्तन करते है | जैसे परम सत्ता क्या है ? उसका अस्तित्व, उसका स्वरुप आदि | कुछ विद्वान Metaphysics के लिए Ontology शब्द का प्रयोग करते है |
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2. ज्ञान मीमांसा या प्रमाण मीमांसा Epistemology
ज्ञान मीमांसा को अंग्रेजी
भाषा में एपिस्टेमोलॉजी (Epistemology) कहते है, जो दो शब्दों एपिस्टेमे (Episteme), जिसका अर्थ है - ज्ञान (Knowledge), और लॉजी (Logy), जिसका अर्थ है - विज्ञान (Science), से मिलकर बना है | इस प्रकार एपिस्टेमोलॉजी (Epistemology) का अर्थ हुआ – ज्ञान का विज्ञान (Science of Knowledge) | ‘Epistemology’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जे. एफ. फेरिवर (J. F. Ferrier) ने किया था |
ज्ञान मीमांसा के अन्तर्गत
ज्ञान, उसके प्रकार, उसका स्वरुप, उसका लक्ष्य, उसकी उत्पत्ति, उसका विकास, उसकी प्रमाणिकता या सत्यता, उसकी सीमा, ज्ञाता और ज्ञेय के सम्बन्ध आदि विषयों का
चिन्तन किया जाता है |
ज्ञान मीमांसा को प्रमाण
मीमांसा भी कहते है |
सही ज्ञान को ‘प्रमा’ कहते है और जिसके द्वारा सही ज्ञान उत्पन्न होता है उसे ‘प्रमाण’ कहते है |
प्रत्येक भारतीय दर्शन ने
प्रमाण की संख्या पर अपना मत इसप्रकार दिया है – चार्वाक दर्शन प्रत्यक्ष को ही एकमात्र प्रमाण मानता है | बौद्ध और वैशेषिक प्रत्यक्ष व अनुमान को प्रमाण
मानते है | जैन, सांख्य और योग ने प्रत्यक्ष, अनुमान व शब्द को प्रमाण
माना है | न्याय ने प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द व उपमान को प्रमाण माना है, मीमांसा व अद्वैत-वेदान्त ने प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, उपमान, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि को प्रमाण माना है |
3. मूल्य मीमांसा Axiology
मूल्य मीमांसा को अंग्रेजी
भाषा में अक्सिओलॉजी (Axiology) कहते है, जो दो शब्दों अक्सिओस (Axios), जिसका अर्थ है – मूल्य (Value), और लॉजी (Logy), जिसका अर्थ है – विज्ञान (Science), से बना है | इस प्रकार अक्सिओलॉजी (Axiology) का अर्थ हुआ – मूल्य का विज्ञान (Science of Value) | इसके अन्तर्गत मूल्यों का स्वरुप, उनका ज्ञान, विश्व के साथ उनका सम्बन्ध आदि विषयों का चिन्तन
किया जाता है |
मूल्य मीमांसा के अन्तर्गत
मुख्य रूप से निम्न तीन विषय आते है –
1. आचार मीमांसा (Ethics)
2. तर्कशास्त्र (Logic)
3. सौन्दर्य शास्त्र (Aesthetics)
1. आचार मीमांसा Ethics
आचार मीमांसा को
नीति-शास्त्र की कहते है | यह व्यक्ति और समाज के
अच्छे-बुरे कर्तव्यों पर चिन्तन करता है और दोनों के लिए नैतिकता-अनैतिकता का
मापदंड प्रस्तुत करता है | इसके अन्तर्गत उचित-अनुचित, नैतिक-अनैतिक, शुभ-अशुभ, वांछनीय-अवांछनीय आदि विषयों पर चिन्तन किया
जाता है |
2. तर्कशास्त्र Logic
तर्कशास्त्र में तर्क के
प्रकारों और उनको विकसित करने की विधियों का अध्ययन किया जाता है | इसके अन्तर्गत तर्क, तर्क करने के सिद्धांत, तर्क की प्रणालियाँ, इसकी सत्यता-असत्यता आदि का चिन्तन किया जाता है
| तर्कशास्त्र निर्णय की विवेचना करता है | मनुष्य के निर्णय प्रमाणित है या अप्रमाणित, इसकी जाँच तर्कशास्त्र ही करता है |
3. सौन्दर्य शास्त्र Aesthetics
सौन्दर्य शास्त्र को
अंग्रेजी भाषा में Aesthetics
कहते है | ‘Aesthetics’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ए.जी. बामगटीन (A.G. Baumgarten) ने किया था | इसके अन्तर्गत सौन्दर्यानुभूति, सौन्दर्य का स्वरुप, उसका अस्तित्व, उसकी वास्तविकता,
उसका महत्व, सौन्दर्यानुभव का अन्य अनुभव के साथ सम्बन्ध आदि
का चिन्तन किया जाता है |
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