जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

जैन धर्म के धर्मोपदेशक तीर्थंकर या जिन कहलाते हैं | जैन शब्द की उत्पत्ति जिन शब्द से हुई है | जिन शब्द संस्कृत की जि धातु से बना है, जि अर्थ है – जीतना , इसप्रकार जिन का अर्थ हुआ विजेता या जीतने वाला और जैन धर्म का अर्थ हुआ विजेताओं का धर्म | जैन धर्म के अनुसार जिन वें हैं जिन्होंने अपने निम्नकोटि के स्वभाव या मनोवेगों पर विजय प्राप्त करके स्वयं को वश में कर लिया हो | दूसरे शब्दों में जिन वें हैं जिन्होंने समस्त मानवीय वासनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है | जिन के अनुयायी जैन कहलाते है | तीर्थंकर का अर्थ है मोक्ष मार्ग के संस्थापक | जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है, जिनमे केवल तेइसवें और चौबीसवें तीर्थंकर की ही ऐतिहासिकता सिद्ध हो पाती है | जैन धर्म जरुर पढ़ें, टच करें- ➽  ब्राह्मण विरोधी राजनीति के प्रतीक करुणानिधि से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार है - 1. ऋषभदेव (आदिनाथ), 2. अजितनाथ, 3. सम्भवनाथ, 4. अभिनन्दननाथ, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभनाथ, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. च...

चिकन पॉक्स की रोकथाम और प्राकृतिक उपचार

Prevention and Natural Remedies for Chicken Pox in Hindi
चिकन पॉक्स (chicken pox), जिसे चेचक और छोटी माता भी कहते है, एक संक्रमण रोग (Infection disease) है | इसके संक्रमण से पूरे शरीर में दानें और फफोले हो जाते है | यह रोग वेरीसेल्ला जोस्टर (Varicella Zoster) नामक विषाणु (Virus) के कारण पैदा होता है | चिकन पॉक्स वायरस (Varicella Zoster Virus - VZV) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से थूक, इसके छालों या फफोलों से निकले द्रव और रोगी के छींकने-खांसने से फैलता है | बड़ों की तुलना में बच्चे चिकन पॉक्स वायरस की चपेट में जल्दी आते है | इनके अधिकतर मामले 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में देखें जाते है | लापरवाही करने पर इसका संक्रमण महामारी का रूप ले लेता है | चिकन पॉक्स (छोटी माता) से पीड़ित बच्चे को एस्प्रीन (Aspirin) बिलकुल नही देना चाहिए | एस्प्रीन (Aspirin) देने पर रेईस सिंड्रोम (Reye Syndrome) जैसा घातक रोग हो सकता है, जो मस्तिष्क क्षति (Brain Damage) के लिए उत्तरदायी होता है |

Prevention and Natural Remedies for Chicken Pox in hindi
चिकन पॉक्स की रोकथाम और प्राकृतिक उपचार


चिकनपॉक्स (चेचक/छोटी माता) के लक्षण Symptoms of Chickenpox

चिकन पॉक्स (चेचक, छोटी माता) के लक्षण तुरन्त नही दिखते है बल्कि संक्रमण होने के 2-3 दिनों के बाद ही उभरते है | यह बहुत ही संक्रामक रोग है, जो देखने में खसरे (Measles) के रोग जैसा भी लगता है | रोगी के शरीर पर दानें या फफोले पेट, पीठ, चेहरे पर पहले दिखाई देते है और इसके बाद ये पूरे शरीर में फैलने लगते है | इस रोग में रोगी को पूरे शरीर में खुजली करने का अत्यधिक मन करता है | सामान्यतया इसके लक्षण दो सप्ताह बाद कम होने लगते है | छोटी माता रोग / चेचक के प्रमुख लक्षण है -

1. शरीर पर पानी भरे लाल दानों व फफोलों का उभरना |
2. उभर रहे दानों में खुजली होना, कभी कभी यह दर्दनाक भी हो जाता है |
3. फटे फफोलों पर पपड़ी जैसी परत आना
4. बुखार आना 
5. उल्टी होना
6. भूख कम लगना
7. खाने में अरुचि
8. थकान महसूस होना 
9. सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द    
10. सीने में जकड़न होना
11. खाँसी, गले में सूखापन 

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चिकन पॉक्स (चेचक/छोटी माता) होने के कारण Causes of Chicken Pox

चिकन पॉक्स या छोटी माता वेरीसेल्ला जोस्टर (Varicella Zoster) नामक विषाणु (Virus) के कारण पैदा होता है | इसके होने की कोई मुख्य वजह नही होती है | इसके वायरस नवजात बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को आसानी से अपना शिकार बनाते है | जिनको बचपन में चिकन पॉक्स से बचाव का टीका नही लगा हो उनको बहुत खतरा होता है | जिनको चिकन पॉक्स पहले कभी नही हुआ हो उनको इसका खतरा रहता है | वे लोग जो चाइल्ड केयर अथवा स्कूल में कार्य करते है उनको भी खतरा रहता है | जो लोग किसी बीमारी के लिए स्टेरॉयड (Steroids) दवाईयों का इस्तेमाल कर रहे हो जैसे अस्थमा से पीड़ित बच्चें, उनको इसके होने खतरा रहता है | 

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चिकन पॉक्स (चेचक/छोटी माता) के नुकसान  Risk of Chicken Pox

चिकन पॉक्स की बीमारी बहुत संक्रामक (Infectious) है | अगर इस बीमारी में लापरवाही की जाती है तो यह बहुत ही घातक होता है | लापरवाही करने पर चिकन पॉक्स का संक्रमण महामारी की तरह फैलता है | भारतीय समाज में लोग समान्यतः चिकन पॉक्स को छोटी माता कह कर पुकारते है और इस रोग का इलाज डॉक्टर से कराने से बचते है | माता के डर से लोग झाड़-फूक व परम्परागत मान्यताओं के अनुसार इस रोग का इलाज करते है | 

यदि चिकन पॉक्स के लक्षण को नियन्त्रित न किया जाये तो इसका संक्रमण मस्तिष्क व लीवर तक पहुच सकता है, जिससे न्यूमोनिया (Pneumonia), हाइड्रोसेफलस  (Hydrocephalus) और पीलिया (Jaundice) का रोग हो सकता है | सामान्यतः एक बार चिकन पॉक्स का रोग ठीक हो जाने पर चिकन पॉक्स वायरस (Varicella Zoster Virus) के खिलाफ शरीर मजबूत प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है जिससे जीवन में दुबारा इस रोग के होने की सम्भावना अत्यधिक कम हो जाती है | परन्तु यदि किसी को चिकन पॉक्स दुबारा हो जाये तो विशेष चिकित्सीय देखभाल (Medical Care) की आवश्यकता होती है | अगर यह बीमारी कम उम्र के बच्चों को दुबारा होती है तो उनके रक्त में बहुत तेजी से लाल रूधिर कणिकाएं (Red Blood Cells) नष्ट हो सकती है, जिसका परिणाम अत्यधिक घातक होता है |

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चिकन पॉक्स (चेचक/छोटी माता) की रोकथाम Prevention of Chicken Pox 

चिकन पॉक्स या छोटी माता आमतौर पर सामान्य या कम गम्भीर रोग है लेकिन अगर इसमे लापरवाही की जाती है तो दूसरे गम्भीर रोग या मृत्यु तक हो सकती है | चिकन पॉक्स की रोकथाम का सबसे अच्छा तरीका है वेरीसेल्ला वैक्सीन का टीकाकरण | जिन लोगों, चाहे बच्चे हो या बड़े, को कभी चिकन पॉक्स नही हुआ हो, उन्हें वेरीसेल्ला वैक्सीन का टीकाकरण करवा लेना चाहिए | ध्यान रखना चाहिए कि रोगी की देखभाल करने वाले व्यक्ति का टीकाकरण हो चुका हो | रोगी की देखभाल करने वाले व्यक्ति को संक्रमण से बचाव के लिए अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए | जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) ज्यादा कमजोर हो उन्हें रोगी से दूर रहना चाहिए | जो महिलाएं गर्भवती होने की योजना बना रही हो या जो गर्भवती हो उन्हें डॉक्टर से मिलकर वेरीसेल्ला वैक्सीन लगवा लेना चाहिए |  

चिकन पॉक्स (चेचक/छोटी माता) का उपचार Treatment of Chicken Pox  


1. डॉक्टर से परामर्श - 
चिकन पॉक्स के होने पर डॉक्टर से परामर्श जरुर लेना चाहिए, बिना चिकित्सकीय परामर्श (Medical Consultation) के परम्परागत रूप से खुद ही इसका इलाज करना ठीक नही रहता है | डॉक्टर से सलाह के बाद मरीज के बुखार और दर्द को कम करने के लिए पेरासिटामोल (Paracetamol) या एसिटामिनोफेन (Acetaminophen) की गोली (Tablet) देनी चाहिए | 

2. बेहतर देखभाल
चूंकि चिकन पॉक्स या छोटी माता बहुत ही संक्रमित बीमारी है इसलिए रोगी को दूसरों से मिलने-जुलने न दे और न ही रोगी को घर के बाहर निकलने दे, जिससे इसका संक्रमण दूसरों को न फैल पायें | छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को विशेष रूप से मरीज से दूर रखना चाहिए | रोगी को पूरी नींद लेनी चाहिए व आराम करने देना चाहिए | खुजली वाले स्थानों (चेहरे को छोड़कर) पर कैलमाईन (Calamine) लोशन लगाने से रोगी को आराम मिलता है |

3. पानी का सेवन 
रोगी को ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए | शरीर में पानी की कमी नही होनी चाहिए | पानी उबालकर सामान्य तापमान पर ठंठा करके देना चाहिए | कोल्ड ड्रिंक या ऐसे दूसरे पेय नही देना चाहिए | खट्टे फलों के जूस का सेवन नही करना चाहिए |       
4. नीम की पत्तियों से उपचार 
नीम की पत्तियां संक्रमण को रोकने के लिए सबसे बेहतर प्राकृतिक उपचार है | इसकी पत्तियों में एंटीवायरल (Antiviral) गुण मौजूद होते है | ताजी व स्वच्छ नीम की पत्तियों को उबालें उसके बाद उसे सामान्य तापमान तक ठंडा होने दे | इस पानी से रोगी को अच्छी तरह से नहलायें | नीम की पत्तियों को पीसकर इसका लेप दानों व फफोलों पर लगाना चाहिए | इससे रोगी का संक्रमण जल्दी ठीक होता है | नीम की साफ व ताजी पत्तियों को रोगी के बिस्तर और आसपास फैला देना चाहिए | 

5. हर्बल चाय 
रोगी को हर्बल चाय दी जा सकती है, इससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है | बाजार से रेडीमेड हर्बल चाय खरीदी जा सकती है या घर पर भी बनाई जा सकती है | दालचीनी, तुलसी, लौंग, इलायची, गुड़ को पानी में उबालकर छान ले फिर इसमे नींबू का रस मिलाकर हर्बल चाय बनाई जा सकती है |

6. उचित पहनावा
रोगी के पहनावे पर ध्यान देना चाहिए | कपड़े कॉटन के हल्के व ढीले होने चाहिए | कसे-चुस्त कपड़े रोगी के लिए नुकसानदायक होते है | कपड़ों को रोज बदलना चाहिए | फफोलों, दानों को ढककर रखना चाहिए | दानों, फफोलों को खुजलाना नही चाहिए | रोगी के नाखून साफ व कटे होने चाहिए |  
 

7. खानपान में संयम
रोगी को सादा और पौष्टिक (Nutritious) भोजन दे | दूध, दही, रबड़ी, शहद, छाछ, दाल, दलिया, खिचड़ी खाना लाभदायक होता है | होटल, ढाबा आदि जगह से बना खाना रोगी को न दे | डेयरी उत्पाद, जंकफूड, मांस, मछली आदि का सेवन करने से रोगी को बचना चाहिए | खाने में ज्यादा मिर्च-मसाला, नमक, तेल, एसिड का प्रयोग न करे | खाने में सलाद जरुर लेना चाहिए | ज्यादा गर्म खाना नही देना चाहिए | दही-चावल खाने से रोगी आराम महसूस करेगा | अंगूर, केला, पपीता, किवी, सेब, तरबूज, गाजर आदि फलों का सेवन रोगी के लिए लाभदायक होता है | जहाँ तक हो सके रोगी को ताजे व मीठे फल ही खिलायें, खट्टे फलों (संतरे आदि) का सेवन न करने दे | रोगी के गले में फफोले पड़ गये हो और फल खाने में परेशानी हो रही हो तो उसे फलों का ताजा जूस पिलाये |        

8. सूप का सेवन
चिकन पॉक्स के मरीज को सूप का सेवन करना चाहिए | रोगी के लिए गाजर का सूप फायदेमंद होता है | गाजर को अच्छी तरह धोकर ताजी व साफ हरी धनिये के कुछ पत्तों के साथ उबालकर सूप बनाकर रोगी को पिलाना चाहिए | यह सूप एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) से भरपूर होता है, जिससे रोगी जल्द स्वस्थ होता है | सूप के अलावा नारियल का पानी रोगी को पिलाना चाहिए | ये दोनों रोगी के शरीर को आंतरिक रूप से ठंडक पहुचाते है |

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9. कब्ज को दूर रखना  
रोगी के लिए पेट साफ रहना फायदेमंद रहता है | कब्ज नही होने देना चाहिए | कब्ज होने पर इसबगोल की भूसी दूध या दही के साथ दे सकते है | इसबगोल पाचन सम्बन्धी अनेक प्रकार के पेट के रोगों के लिए प्रभावकारी आयुर्वेदिक औषधि है | इसबगोल की तासीर ठंडी होती है जिसके कारण यह रोगी के लिए अत्यधिक लाभदायक होती है |

10. जइ के दलिया से स्नान 
अगर रोगी को अत्यधिक खुजली हो रही हो तो उसे जइ के दलिये से नहलाना चाहिए | 5 कप जइ के दलिया को करीब 5 लीटर साफ पानी में उबालकर ठंडा करके छानकर रख ले | इस पानी से खुजली वाले स्थानों को धोते रहे | इससे रोगी को बेहतर आराम मिलेगा |

11. एस्प्रीन (Aspirin) बिलकुल न दें 
चिकन पॉक्स (छोटी माता) होने पर बच्चों को एस्प्रीन (Aspirin) कदापि नही देना चाहिए | बच्चों को एस्प्रीन (Aspirin) देने पर रेईस सिंड्रोम (Reye Syndrome) नामक एक घातक रोग होने की सम्भावना हो जाती है, रेईस सिंड्रोम से बच्चों में मस्तिष्क क्षति (Brain Damage) हो जाती है, जिससे मरीज कोमा में जा सकता है | रिसर्च से पता चला है कि बच्चों में एस्प्रीन का प्रयोग रेईस सिंड्रोम का जोखिम बढ़ा देता है | इस रिसर्च के सामने आने पर अब डॉक्टर बच्चों को दर्दनाशक के रूप में एस्प्एस्प्रीन की जगह अन्य दवाओं के इस्तेमाल की सलाह देते हैं |

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