जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

जैन धर्म के धर्मोपदेशक तीर्थंकर या जिन कहलाते हैं | जैन शब्द की उत्पत्ति जिन शब्द से हुई है | जिन शब्द संस्कृत की जि धातु से बना है, जि अर्थ है – जीतना , इसप्रकार जिन का अर्थ हुआ विजेता या जीतने वाला और जैन धर्म का अर्थ हुआ विजेताओं का धर्म | जैन धर्म के अनुसार जिन वें हैं जिन्होंने अपने निम्नकोटि के स्वभाव या मनोवेगों पर विजय प्राप्त करके स्वयं को वश में कर लिया हो | दूसरे शब्दों में जिन वें हैं जिन्होंने समस्त मानवीय वासनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है | जिन के अनुयायी जैन कहलाते है | तीर्थंकर का अर्थ है मोक्ष मार्ग के संस्थापक | जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है, जिनमे केवल तेइसवें और चौबीसवें तीर्थंकर की ही ऐतिहासिकता सिद्ध हो पाती है | जैन धर्म जरुर पढ़ें, टच करें- ➽  ब्राह्मण विरोधी राजनीति के प्रतीक करुणानिधि से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार है - 1. ऋषभदेव (आदिनाथ), 2. अजितनाथ, 3. सम्भवनाथ, 4. अभिनन्दननाथ, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभनाथ, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. च...

शिक्षा और दर्शन के बीच सम्बन्ध

Relation between Education and Philosophy in Hindi


शिक्षा और दर्शन में सम्बन्ध अटूट है तथा ये दोनों ही एक-दूसरे पर आश्रित है | दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है | जहाँ शिक्षा, दर्शन का आधार है वही दर्शन, शिक्षा का आदर्श है | शिक्षा वास्तव में दर्शन का गतिशील व व्यावहारिक पक्ष है | शिक्षा वह ही उपयोगी व सार्थक होती है, जो किसी दर्शन से प्रभावित होकर दी जाती है | एक दार्शनिक, शिक्षा द्वारा ही दर्शन सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता है | दर्शन जीवन के उस वास्तविक लक्ष्य को निर्धारित करता है, जिसे शिक्षा को प्राप्त करना है | दर्शन, शिक्षा के स्वरुप की व्याख्या करता है और इस व्याख्या से हमे शिक्षा के सही सम्प्रत्यय का ज्ञान होता है | उदाहरणार्थ आदर्शवादी दर्शन शिक्षा को अध्यात्मिक क्रिया मानता है और प्रकृतिवादी दर्शन इसे एक प्राकृतिक क्रिया मानता है जबकि प्रयोजनवादी दर्शन इसे सामाजिक क्रिया मानता है |

relation between education and philosophy
Relation between Education and Philosophy 

शिक्षा के उद्देश्य दर्शन से प्रभावित होते है | जैसे आदर्शवादी दर्शन मनुष्य को आत्माधारी मानता है जबकि प्रकृतिवादी दर्शन इसे मनोशारीरिक प्राणी मानता है | शिक्षा के उद्देश्य की भांति इसकी पाठ्यचर्या भी दर्शन से प्रभावित होती है | जैसे जिस समाज में आदर्शवादी विचारधारा का मुख्य प्रभाव होता है, उस समाज में शिक्षा की पाठ्यचर्या में धर्म, दर्शन, नैतिकता और साहित्य का मुख्य स्थान होता है |

इसप्रकार शिक्षा और दर्शन में गहन सम्बन्ध होता है और एक के अभाव में दूसरे का अस्तित्व असम्भव है |

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शिक्षा और दर्शन में सम्बन्ध


शिक्षा व दर्शन में सम्बन्ध को विस्तार से निम्न प्रकार से समझा जा सकता है -


दर्शन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू है


जे. एस. रॉस के अनुसार दर्शन और शिक्षा एक सिक्के के दो पहलुओं के समान एक वस्तु के विभिन्न पक्षों का बोध कराते है |” [“Philosophy and Education like the two sides of the same coin, present different views of same thing. – J.S. Ross] जिस प्रकार कोई सिक्का तब ही मूल्यवान समझा जाता है जब उसके एक ओर कोई राष्ट्रीय आकृति हो तथा दूसरी ओर उसका मूल्य अंकित हो तथा इनमे से किसी एक में भी कमी होने पर वह खोटा सिक्का (useless coin) माना जायेगा, उसी प्रकार शिक्षा व्यवस्था उस सिक्के पर बनी आकृति जैसी होती है और दर्शन उस सिक्के पर अंकित मूल्य के समान होता है |

शिक्षा व्यवस्था दार्शनिक चिन्तन पर आधारित होती है और दर्शन शैक्षिक विचारधारा पर आधारित होता है | अगर शिक्षा व्यवस्था का अपना कोई दर्शन नही है और दर्शन का अपना कोई शैक्षिक महत्व नही है तो दोनों ही खोटे सिक्के के समान की ही माने जायेंगे |

शिक्षा के द्वारा ही दार्शनिक विचारधाराओं का जन्म व विकास हुआ है और दार्शनिक विचारधाराओं के द्वारा ही शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य व उसके अन्य अंगों के स्वरुप का निर्धारण होता है |

दर्शन की विचारधारा शिक्षा के माध्यम से प्रसार करती है और हर शिक्षा का अपना एक दार्शनिक सिद्धांत होता है | दर्शन शिक्षा का सैद्धांतिक पक्ष है और शिक्षा दर्शन का व्यावहारिक पक्ष है | इसप्रकार दर्शन व शिक्षा में अटूट सम्बन्ध है और ये दोनों ही एक-दूसरे पर आश्रित है |


दर्शन और शिक्षा एक-दूसरे पर निर्भर है


दर्शन और शिक्षा एक-दूसरे पर पूर्णतया निर्भर है | बिना दर्शन के शिक्षा के उद्देश्य व उसके अन्य अंगों का निर्धारण नही हो सकता है और बिना शिक्षा के दार्शनिक विचारधाराओं के महत्व को समझा नही जा सकता है |

जहाँ दर्शन शिक्षा को एक उद्देश्यपूर्ण आकार प्रदान करता है, वही शिक्षा दर्शन के विकास की आधारशिला है | एक के बिना दूसरे का अस्तित्व सम्भव नही है | जी. ई. पोर्टरिज के शब्दों में “जिसप्रकार शिक्षा दर्शन पर आधारित है, उसीप्रकार दर्शन शिक्षा पर आधारित है |” इसप्रकार दोनों ही एक-दूसरे के पूरक है और दोनों एक ही प्रक्रिया के दो पहलू है |


शिक्षा दर्शन के प्रसार का सर्वोत्तम साधन है


जहाँ एक ओर शिक्षा दर्शन के निर्माण की आधारशिला है वही दूसरी ओर वह दर्शन के प्रसार का सर्वोत्तम साधन भी है | दर्शन के गूढ़ रहस्य को शिक्षा के माध्यम से ही समझा जा सकता है और इसे समझने के पश्चात् शिक्षा के माध्यम से ही इसका प्रचार-प्रसार किया जाता है | शिक्षा दर्शन को समझने व इसके प्रचार-प्रसार में सहायक है | इसप्रकार शिक्षा दर्शन के प्रसार का सर्वोत्तम साधन है |


सभी दार्शनिक शिक्षक भी रहे है


प्राचीन काल से वर्तमान काल तक शिक्षा और दर्शन के इतिहास पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि लगभग सभी दार्शनिक शिक्षक भी रहे है | प्राचीन काल में जहाँ सुकरात, प्लेटो, अरस्तू आदि दार्शनिक शिक्षक भी थे वही आधुनिक काल में लॉक, जॉन डीवी, किलपेट्रिक, रूसो, फ्रान्सिस बेकन, मान्टेसरी, फ्रोबेल, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, अरविन्दो स्वामी आदि सभी दार्शनिक और शिक्षक दोनों थे | वास्तव में हर दार्शनिक, शिक्षक ही होता है क्योकि वह अपने दार्शनिक विचारों के द्वारा दूसरो को शिक्षित करता है | 


दर्शन शिक्षा की रूपरेखा निर्धारित करता है


शिक्षा की रूपरेखा व उद्देश्य दर्शन ही निर्धारित करता है | बिना दार्शनिक रूपरेखा व उद्देश्य के शिक्षा मूल्यविहीन ही मानी जायेगी | वास्तव में हर शिक्षा, दर्शन से प्रभावित होती है | शिक्षा सिद्धांत, दर्शन सिद्धांत पर ही आधारित होता है |

दर्शन को आधार बनाकर ही शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या, शिक्षण-विधियाँ, पाठ्यपुस्तकें, अनुशासन आदि का निर्धारण किया जाता है | दर्शन की विविध विचारधाराओं ने शिक्षा की रूपरेखा को देश, काल व परिस्थिति के अनुसार प्रभावित करके इसका निर्धारण किया है |


दर्शन और शिक्षा का जीवन से अटूट सम्बन्ध है


दर्शन व शिक्षा दोनों का जीवन से अटूट सम्बन्ध है | जे. एस. रॉस के अनुसार दर्शन जीवन का विचारात्मक पहलू है, जबकि शिक्षा जीवन का क्रियात्मक पहलू है |

जीवन के सुचारू और उद्देश्यपूर्ण संचालन में दर्शन और शिक्षा दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान हैजहाँ दर्शन जीवन के उद्देश्यों का निर्धारण करता है वही शिक्षा उन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होती है | दोनों का ही लक्ष्य मानव जीवन के विकास में योगदान देना है |

इसप्रकार दर्शन व शिक्षा दोनों ही एक उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए अतिआवश्यक है और दोनों का ही जीवन से गहरा सम्बन्ध है | शिक्षा भाषा को जन्म देती, भाषा विचार व चिन्तन को जन्म देती है, विचार व चिन्तन दर्शन को जन्म देते है और दर्शन जीवन का अन्तिम लक्ष्य का निर्धारण करता है | इसप्रकार दर्शन और शिक्षा का जीवन से अटूट सम्बन्ध है |

शिक्षा दर्शन को सक्रिय बनाने में सहायक है

शिक्षा, दर्शन को सक्रिय बनती है | दार्शनिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है | शिक्षा, दर्शन के वास्तविक उद्देश्यों से जन-सामान्य को अवगत करती है | बिना शिक्षा के दर्शन के उद्देश्यों व लक्ष्यों की पूर्ति नही की जा सकती है | शिक्षा ही इसे सक्रिय बनाती है और इसके प्रचार-प्रसार का माध्यम बनती है |

शिक्षा ही दर्शन को उचित-अनुचित, नैतिक-अनैतिक, वांछनीय-अवांछनीय शुभ-अशुभ, आत्मा-परमात्मा आदि का ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम बनती है और इस ज्ञान में सक्रियता उत्पन्न करती है |
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