जैन धर्म के धर्मोपदेशक तीर्थंकर या जिन कहलाते हैं | जैन शब्द की उत्पत्ति जिन शब्द से हुई है | जिन शब्द संस्कृत की जि धातु से बना है, जि अर्थ है – जीतना, इसप्रकार जिन का अर्थ हुआ विजेता या जीतने वाला और जैन धर्म का अर्थ हुआ विजेताओं का
धर्म | जैन धर्म के अनुसार जिन वें हैं जिन्होंने अपने निम्नकोटि के स्वभाव या
मनोवेगों पर विजय प्राप्त करके स्वयं को वश में कर लिया हो | दूसरे शब्दों में जिन वें हैं जिन्होंने समस्त मानवीय वासनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है | जिन के
अनुयायी जैन कहलाते है | तीर्थंकर का अर्थ है मोक्ष मार्ग के संस्थापक | जैन
परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है, जिनमे केवल तेइसवें और
चौबीसवें तीर्थंकर की ही ऐतिहासिकता सिद्ध हो पाती है |
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"जिस धर्म में दया न हो वो धर्म नही" एक बार तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने देखा कि कुछ लोग पूजा सामग्री लेकर नगर के बाहर जा रहें है | उन्होंने कारण पता लगाया तो पता चला कि नगर के बाहर एक तपस्वी आया हुआ है | तीर्थंकर भी उत्सुकता पूर्वक उसे देखने चले गयें | उन्होंने वहाँ स्वयं के अवधि-ज्ञान द्वारा देखा कि तपस्वी जहाँ पंचाग्नि जला रहा है उसी में एक बड़ी लकड़ी के अंदर एक नाग भी जल रहा है | ऐसा ज्ञान होने पर उनका हृदय करुणा से भर गया | उन्होंने तपस्वी से पूछा, "धर्म का मूल दया है, यह अग्नि प्रज्वलित करने से किस तरह सम्भव हो सकता है, क्योकि अग्नि प्रज्वलित करने से तो विनाश ही होता है | अहो ! यह कैसा धर्म है कि जिसमे दया न हो |" उनकी बात सुनकर तपस्वी अभिमान के साथ बोला, "धर्म का स्वरूप (रहस्य) आप क्या जानो, यह तो हम तपस्वी ही जानतें है | क्या कोई पंचाग्नि में जल रहा कोई जीव बता सकता है ?" उस अभिमानी तपस्वी की इस प्रकार बातें सुनकर तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने उस पंचाग्नि से लकड़ी को बाहर निकलवाया और जब उसे चीरा गया तो उसमे से जलता हुआ घायल नाग बाहर निकला | इसप्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने उस नाग की रक्षा की | नाग उद्धार की इस घटना ने तीर्थंकर पार्श्वनाथ को वैराग्य की और ले जाने में मदद की थी यद्यपि उस समय उनकी आयु मात्र 16 वर्ष की थी |
तीर्थंकर पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में गृहस्थ जीवन त्यागकर सम्मेद पर्वत (इन्ही के नाम पर इस पर्वत को पार्श्वनाथ पर्वत / पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है) पर तपस्या करने चले गये थे | अपने कठोर तप द्वारा इन्होने कैवल्य (केवल-ज्ञान या परम-ज्ञान) प्राप्त करके जीवनपर्यन्त जनमानस को धर्मोपदेश देते रहे | उन्होंने लोगों को बताया कि सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चरित्र आवरण मुक्ति का सच्चा मार्ग है |
तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अनुयायी निर्ग्रन्थ कहलाते थे | बाद में महावीर स्वामी द्वारा स्थापित संघ के सदस्यों को निर्ग्रन्थ कहा गया | चातुर्याम (चार याम अर्थात् उपाय) तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शिक्षाओं के चार प्रमुख अंग माने जाते है | चातुर्याम में अहिंसा (जीव हिंसा न करना), सत्य (असत्य न बोलना), अस्तेय (चोरी न करना) व अपरिग्रह (सम्पत्ति अर्जित न करना) की शिक्षायें आती है |
भगवतीसूत्र में तीर्थंकर पार्श्वनाथ और तीर्थंकर महावीर स्वामी के अनुयायियों के बीच वाद-विवाद का उल्लेख मिलता है | तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अनुयायी चातुर्याम में ही विश्वास करते थें न कि तीर्थंकर महावीर द्वारा प्रतिपादित पंचमहाव्रत में | उल्लेखनीय है कि कालान्तर में महावीर स्वामी ने चातुर्याम में ब्रह्मचर्य जोड़ दिया था और तब इन्हे पंचमहाव्रत कहा गया |
तीर्थंकर पार्श्वनाथ की लम्बाई 10 हाथ थी और वें 100 वर्ष तक जीवित रहें | इनका निर्वाण 776 ई.पू. में सम्मेद पर्वत पर हुआ था | इनका वैराग्य वृक्ष घव वृक्ष, लक्षण चिन्ह सर्प और लक्षण रंग काला है | इनकें सिर के ऊपर सात सर्पफणों के छत्र के प्रदर्शन का वर्णन मिलता है |
महावीर स्वामी के ज्ञातृ कुल में उत्पन्न होने के कारण बौद्ध निकाय में इन्हे निगण्ठ नातपुत्त (निर्ग्रन्थ ज्ञातृ-पुत्र) कहा गया है | जामालि प्रारम्भ में महावीर स्वामी का शिष्य बना लेकिन मतभेद के कारण उसने ही उनके खिलाफ पहला विद्रोह किया था तथा स्वयं को जिन घोषित कर दिया था | एक अन्य विद्रोह उनके शिष्य मंखलिपुत्र गोशाल ने किया था तथा इनसे अलग होकर उसने आजीवक धर्म की स्थापना करके स्वयं को जिन घोषित कर दिया था |
महावीर स्वामी तीस वर्ष तक सुखी गृहस्थ जीवन बिताया तथा माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् बड़े भाई नन्दिवर्द्धन से आज्ञा लेकर यती (संन्यासी) हो गये | बारह वर्ष की अत्यन्त कठोर तपस्या के बाद बयालीस वर्ष की आयु में जृम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे एक शाल वृक्ष के नीचे कैवल्य (केवल-ज्ञान या मोक्ष या परम-ज्ञान) की प्राप्ति हुई | कैवल्य प्राप्ति के बाद वे महावीर (The Great Spiritual Hero) केवलिन, जिन (जिसने अपनी इन्द्रियों को विजित कर लिया हो, विजेता), अर्हत (योग्य) और निर्ग्रन्थ (बन्धन-रहित) कहलाये |
कहा जाता है कि अपनी बारह वर्ष की घोर तपस्या के दौरान उन्होंने एक बार भी अपने वस्त्र नही बदले और कैवल्य-प्राप्ति के बाद उन्होंने वस्त्र का पूर्ण त्याग कर दिया | ध्यान रहे तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने अपने अनुयायियों को निचले और ऊपरी अंगों को वस्त्र से ढकने की अनुमति दी थी, परन्तु महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को वस्त्र के पूर्णतः त्याग का आदेश दिया था | महावीर स्वामी के अनुयायी जैन कहलाते है | कैवल्य-प्राप्ति के पश्चात् महावीर स्वामी जीवनपर्यन्त अपने सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार करते रहे | उनका निर्वाण 468 ई.पू. में 72 वर्ष की आयु में राजगीर के समीप पावापुरी में हुआ था |
तीर्थंकर महावीर स्वामी की लम्बाई 7 हाथ (6 फीट) थी | इनका वैराग्य वृक्ष शाल वृक्ष, लक्षण चिन्ह सिंह और लक्षण रंग स्वर्ण है |
जैन धर्म |
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जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम
जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार है - 1. ऋषभदेव (आदिनाथ), 2. अजितनाथ, 3. सम्भवनाथ, 4. अभिनन्दननाथ, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभनाथ, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. चन्द्रप्रभ, 9. पुष्पदंत (सुविधि), 10. शीतलनाथ, 11. श्रेयांसनाथ, 12. वासुपूज्य, 13. विमलनाथ, 14. अनन्तनाथ, 15. धर्मनाथ, 16. शांतिनाथ, 17. कुन्थुनाथ, 18. अरहनाथ (अरनाथ), 19. मल्लिनाथ (ये महिला तीर्थंकर थी), 20. मुनि सुव्रतनाथ , 21. नमिनाथ, 22. अरिष्टनेमि (नेमिनाथ), 23. पार्श्वनाथ, 24. महावीर स्वामी (वर्धमान) |1. ऋषभदेव या आदिनाथ
पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थें जिन्हें ऋषभनाथ, बृषभदेव या आदिनाथ भी कहा जाता है | आदि तीर्थंकर ऋषभदेव को सनातनधर्मी हिन्दू भगवान विष्णु के 24 अवतारों में स्थान देते है | इनके पिता अयोध्या के राजा नाभिराज और माता महारानी मरूदेवी थी तथा यें इक्ष्वाकु वंश के थें | जैन परम्परा के अनुसार वें ही इस पृथ्वी के प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम राजा थें | इन्ही से जैन धर्म का आरम्भ माना जाता है | जैन परम्परानुसार इनके समय समाज प्रायः असभ्य व बर्बर था | इन्होंने ही सर्वप्रथम पृथ्वी पर मानव-धर्म (समाजनीति, कानून-व्यवस्था, राजनीति आदि) की व्यवस्था स्थापित की | इन्होंने सर्वप्रथम चार बड़े राजाओं का निर्माण किया और उनके अधीन हजारों छोटे-छोटे राजाओं और सामंतों का निर्माण किया |
ऋषभदेव के भरत चक्रवर्ती व बाहुबली नामक दो पुत्र और ब्राह्मी व सुन्दरी नामक दो पुत्रियाँ थीं | कहा जाता है कि एक बार इनके सामने इनकी राज्यसभा में नीलांजना नाम की नर्तकी नृत्य करते करते गिर कर मर गयी थी, जिससे इन्हे अत्यंत दुःख हुआ और इनका सांसारिक सुखों से मोह भंग हो गया | वें अपना राजकाज अपने पुत्र भरत को देकर तपस्या करने जंगल में चले गये | अत्यंत कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप इन्हें पुरिमताल नामक अयोध्या के एक उपनगर में केवल-ज्ञान प्राप्त हुआ |
इनकें धर्मोपदेश मनुष्य के साथ-साथ पशु भी सुनते थें | इनकी धर्मोपदेशक सभा को समवसरण कहा जाता है | जीवनपर्यन्त प्राणीमात्र के कल्याण के लिए धर्मोपदेश देते हुए इन्होंने अष्टापद शिखर (कैलाश पर्वत) पर निर्वाण ले लिया | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) वट वृक्ष से है | ऋषभदेव का लक्षण चिन्ह वृषभ (बैल) और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है | इनकी ऊंचाई (लम्बाई) 500 धनुष (1500 मीटर) थी |
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➽ जैन दर्शन का अनेकान्तवाद
इनकें धर्मोपदेश मनुष्य के साथ-साथ पशु भी सुनते थें | इनकी धर्मोपदेशक सभा को समवसरण कहा जाता है | जीवनपर्यन्त प्राणीमात्र के कल्याण के लिए धर्मोपदेश देते हुए इन्होंने अष्टापद शिखर (कैलाश पर्वत) पर निर्वाण ले लिया | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) वट वृक्ष से है | ऋषभदेव का लक्षण चिन्ह वृषभ (बैल) और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है | इनकी ऊंचाई (लम्बाई) 500 धनुष (1500 मीटर) थी |
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2. अजितनाथ :
जैन परम्परानुसार दुसरे अजितनाथ अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय राजा जितशत्रु और महारानी विजया के पुत्र थे | जैन परम्परानुसार अजितनाथ की ऊंचाई (लम्बाई) 450 धनुष (1350 मी.) थी और यें कुल 72 लाख वर्ष तक जीवित रहें | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) सप्तपर्ण नामक पवित्र वृक्ष से है | इन्होंने सम्मेद शिखर या पारसनाथ पर्वत (छोटा नागपुर पठार, झारखंड) पर निर्वाण प्राप्त किया था | इनका लक्षण चिन्ह हस्ति (हाथी) और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |
जैन धर्म के तेइसवें
तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे | इनका जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था | इनके पिता काशी (वाराणसी) के इक्ष्वाकु वंशीय राजा
अश्वसेन, माता रानी वामा देवी और पत्नी प्रभावती थी |3. सम्भवनाथ :
जैन परम्परानुसार तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ थें | इनके पिता इक्ष्वाकु वंशीय राजा जितारि तथा माँ सेना रानी थी | इनका जन्म कोशल देश (अयोध्या) के श्रावस्ती नगर में हुआ था | इनका उल्लेख कुषाण वंशीय राजा हुविष्क के मथुरा अभिलेख में भी हुआ है | जैन परम्परानुसार यें 60 लाख वर्ष तक जीवित रहें तथा इनकी लम्बाई 400 धनुष (1200 मी.)के बराबर थी | सम्भवनाथ का सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) शाल वृक्ष से है | इन्होंने भी सम्मेद शिखर (पारसनाथ पर्वत) पर निर्वाण प्राप्त किया था | इनका लक्षण चिन्ह अश्व (घोड़ा) और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |4. अभिनन्दननाथ :
चौथे तीर्थंकर अभिनन्दन का जन्म कोशल (अयोध्या) के विनीता नामक नगर में हुआ था | इनके पिता इक्ष्वाकु वंशीय संवर और माँ सिद्धार्था थी | यें 50 वर्ष जीवित रहें तथा इनकी लम्बाई 350 धनुष (1050 मी.) थी | इन्होंने सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) देवदार वृक्ष से है | इनका लक्षण चिन्ह बन्दर और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |
5. सुमतिनाथ :
पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ का जन्म कोशल देश (अयोध्या) में हुआ था | इनके पिता का नाम मेघरथ और माता का नाम सुमंगला था | इनका जन्म भी इक्ष्वाकु वंश में हुआ था | जैन परम्परानुसार यें 40 लाख वर्ष जीवित रहें | इनकी लम्बाई 300 धनुष (900 मी.) के बराबर थी | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) प्रियंगु वृक्ष से है | इनका निर्वाण सम्मेद शिखर पर हुआ | इनका लक्षण चिन्ह चकवा और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |
6. पद्मप्रभनाथ :
छठे तीर्थंकर पद्मप्रभ का जन्म वत्स महाजनपद के कौशाम्बी नगर में हुआ था | इनके पिता इक्ष्वाकु वंशीय राजा श्रीधर धरणराज और माँ महारानी सुसीमा थी | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) प्रियंगु वृक्ष से है | यें 30 लाख वर्ष तक जीवित रहें तथा इनकी ऊंचाई 250 धनुष (750 मी.) थी तथा इनका भी निर्वाण सम्मेद शिखर पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह पद्म (कमल) और लक्षण रंग लाल है |
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7. सुपार्श्वनाथ :
सातवें तीर्थंकर सुपार्श्व का जन्म का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था | इनके पिता इक्ष्वाकु वंशीय सुप्रतिष्ठ (प्रतिष्ठराज) और माता पृथ्वी थी | इनकी आयु 20 लाख वर्ष और ऊंचाई 200 धनुष (600 मी.) थी | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) शिरीष वृक्ष से है | इनका निर्वाण भी सम्मेद शिखर पर हुआ था | इनका लक्षण (चिन्ह) स्वास्तिक और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |8. चन्द्रप्रभ :
जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का जन्म चन्द्रपुरी में हुआ था | कुछ विद्वान चन्द्रपुरी की पहचान काशी (वाराणसी) के निकट स्थित चन्द्रावती नामक आधुनिक गाँव से करते है | इनका भी वंश इक्ष्वाकु था | इनके पिता का नाम महासेन और माँ का नाम लक्ष्मणा था | इनकी ऊंचाई 150 धनुष (450 मी.) के बराबर थी | यें कुल 10 लाख वर्ष जीवित रहें | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) नागवृक्ष से है | इनका लक्षण चिन्ह चन्द्रमा और लक्षण रंग श्वेत (सफेद) है | इनका निर्वाण भी सम्मेद शिखर पर हुआ है |9. पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) :
जैन धर्म के नवें तीर्थंकर पुष्पदन्त या सुविधिनाथ थें | यें भी इक्ष्वाकु वंश के थें | इनके पिता का नाम सुग्रीव और माँ का नाम रामा था | इनका जन्म काकन्दी नामक नगर में हुआ था | विद्वानों के अनुसार काकन्दी आधुनिक मुंगेर (बिहार) में स्थित काकन का ही प्राचीन नाम है | इनकी पूरी उम्र 2 लाख वर्ष थी | इनकी ऊंचाई 100 धनुष (300 मी.) के बराबर थी | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) मालि (मल्लि) नामक वृक्ष से है | इनका निर्वाण भी सम्मेद शिखर पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह मगर और लक्षण रंग श्वेत (सफेद) है |यें भी पढ़ें, टच करें -
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10. शीतल नाथ :
जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ भी इक्ष्वाकु वंश से सम्बन्धित थें | इनका जन्म भद्रिकापुरी नामक स्थान में हुआ था | इनकें पिता का नाम दृढ़रथ और माता का नाम सुनन्दा था | इनका सम्बन्ध (वैराग्य वृक्ष) प्लक्ष नामक वृक्ष से है | यें 1 लाख वर्ष तक जीवित रहें थें और इनकी ऊंचाई 90 धनुष (270 मी.) थी | इनका निर्वाण भी सम्मेद शिखर पर हुआ था | इनका प्रमुख लक्षण चिन्ह कल्पवृक्ष था और लक्षण रंग सुनहरा है |
11. श्रेयांसनाथ :
11वें तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंशीय श्रेयांसनाथ का जन्म सिंहपुर में हुआ था | वाराणसी के निकट स्थित आधुनिक सिंहपुरी को ही सिंहपुर माना जाता है | इनके पिता का नाम विष्णु और माँ का नाम विष्णा था | यें 84 लाख वर्ष तक जीवित रहें और इनकी ऊंचाई 80 धनुष (240 मी.) थी | इनका वैराग्य वृक्ष तेंदुका वृक्ष है | इन्होंने भी सम्मेद शिखर पर निर्वाण लिया था | इनका प्रमुख लक्षण गैंडा और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |
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जैन परम्परानुसार यादव वंशी राजा अंधक वृष्णी बड़े पुत्र समुद्रविजय (अरिष्टनेमि के पिता) और छोटे पुत्र वसुदेव (हिन्दू देवता श्रीकृष्ण के पिता) थें | इस प्रकार अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण एक-दूसरे के चचेरे भाई थें | अरिष्टनेमि का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है |
जैन परम्परानुसार अरिष्टनेमि का विवाह गिरनार (जूनागढ़) के राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से तय हुआ | जब अरिष्टनेमि विवाह के दिन बारात के साथ राजा उग्रसेन के महल पहुचें तब उनकी नगर एक स्थान पर बंधे बहुत सारे पशुओं पर पड़ी | जब उन्हें यह पता चला कि विवाह में आयें मांसाहारी अतिथियों के लिए इन्हे मारा जायेगा तो उन्हें अत्यंत दुःख हुआ और उनका मन सांसारिक मोह से भंग हो गया | विवाह से मना करके वें गिरनार पर्वत (जूनागढ़, गुजरात) पर तपस्या करने चले गये |
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12. वासुपूज्य :
12वें जैन तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म चम्पापुरी में हुआ था | यें भी इक्ष्वाकु वंश के थें | इनके पिता का नाम वासुपूज्य और माता का नाम जया था | यें 72 लाख वर्ष तक जीवित रहें और इनकी ऊंचाई 70 धनुष (210 मी.) के बराबर थी | इनका वैराग्य वृक्ष पाटला वृक्ष है | इनका निर्वाण चम्पापुरी में ही हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह भैंसा और लक्षण रंग लाल है |13. विमलनाथ :
13वें तीर्थंकर विमलनाथ का जन्म काम्पिल में हुआ था | इनका भी वंश इक्ष्वाकु था | इनके पिता का नाम कृतवर्मन और माँ का नाम श्यामा था | इनकी ऊंचाई 60 धनुष (180 मी.) थी और यें 60 लाख वर्ष जीवित रहें | इनका वैराग्य वृक्ष जम्बू वृक्ष है और इनका निर्वाण सम्मेद शिखर पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह सुअर और रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |14. अनन्तनाथ :
14वें तीर्थंकर अनन्तनाथ का जन्म अयोध्या में हुआ था | इनका भी वंश इक्ष्वाकु था | इनके पिता का नाम सिंहसेन और माँ का नाम सुयशा था | यें 30 लाख वर्ष तक जीवित रहें और इनकी ऊंचाई या लम्बाई 50 धनुष (150 मी.) के बराबर थी | इनका वैराग्य वृक्ष पीपल वृक्ष है | इनका निर्वाण सम्मेद शिखर पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह सेही और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |15. धर्मनाथ :
15वें तीर्थंकर धर्मनाथ का जन्म रत्नपुरी में हुआ था | इनके इक्ष्वाकु वंशीय पिता का नाम भानु और माँ का नाम सुव्रता था | इनकी लम्बाई 45 धनुष (135 मी.) थी | इनका वैराग्य वृक्ष दधिपर्ण वृक्ष है | इनकी आयु 25 लाख वर्ष थी | इनका सम्मेद शिखर पर निर्वाण हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह वज्र और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |must read -
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16. शांतिनाथ :
16वें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था | इनका भी वंश इक्ष्वाकु था | इनके पिता विश्वसेन और माँ ऐराणी थी | इनका वैराग्य वृक्ष नन्द वृक्ष है | इनकी लम्बाई 40 धनुष (120 मी.) थी | यें 1 लाख वर्ष तक जीवित रहें | इनका निर्वाण भी सम्मेद पर्वत पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह हिरन (सींगों वाला) और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |17. कुन्थुनाथ :
17 वें तीर्थंकर कुन्थुनाथ थें | इनका जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था | इनकें इक्ष्वाकु वंशीय पिता का नाम शूर (सूर्य) और माँ का नाम श्री (श्रीदेवी) था | इनकी लम्बाई (ऊंचाई) 35 धनुष (105 मी.) थी और यें 95 हजार वर्ष जीवित रहें | इनका वैराग्य वृक्ष तिलक वृक्ष है | इनका भी निर्वाण सम्मेद पर्वत पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह बकरा और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |18. अरहनाथ (अरनाथ) :
18वें तीर्थंकर अरहनाथ (अरनाथ) का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था | इनका भी वंश इक्ष्वाकु वंश था | इनकें पिता का नाम सुदर्शन और माँ का नाम देवी था | इनकी ऊंचाई 30 धनुष (90 मी.) और आयु 84 हजार वर्ष थी | इन्होंने भी सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था | इनका वैराग्य वृक्ष आम्र वृक्ष है | इनका लक्षण चिन्ह मछली और लक्षण रंग स्वर्ण (सुनहरा) है |19. मल्लिनाथ :
19वें तीर्थंकर का नाम मल्लिनाथ है | इक्ष्वाकु वंशीय मल्लिनाथ को नारी तीर्थंकर माना जाता है | इनका जन्म मिथिला में हुआ था | इनके पिता का नाम कुम्भ और माँ का नाम प्रभावती था | इनकी लम्बाई 25 धनुष (75 मी.) थी और यें 45 हजार वर्ष जीवित रहीं | इनका वैराग्य वृक्ष अशोक वृक्ष है | इन्होंने भी सम्मेद पर्वत पर निर्वाण लिया था | इनका लक्षण चिन्ह कलश और लक्षण रंग नीला है |20. मुनिसुव्रतनाथ :
20वें जैन तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का जन्म राजग्रह (राजगीर) में हुआ था | इनका वंश हरिवंश था | इनके पिता का नाम सुमित्र और माँ का नाम पद्मावती था | इनका वैराग्य वृक्ष चम्पक वृक्ष है | इनकी लम्बाई 20 धनुष (60 मी.) और आयु 30 हजार वर्ष थी | इनका निर्वाण सम्मेद शिखर (सम्मेद पर्वत) पर हुआ था | इनका लक्षण चिन्ह कछुआ और लक्षण रंग काला है |21. नमिनाथ :
21वें तीर्थंकर नमिनाथ का जन्म मिथिला में हुआ था | इनका वंश इक्ष्वाकु वंश था | इनके पिता का नाम विजय और माँ का नाम वप्रा था | इनकी लम्बाई 15 धनुष (45 मी.) थी | यें 10 हजार वर्ष तक जीवित रहें | तीर्थंकर नमिनाथ को मिथिला के हिन्दू पौराणिक राजा जनक का पूर्वज माना जाता है | इनको सम्मेद पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ था | इनका वैराग्य वृक्ष वकुल वृक्ष है | इनका लक्षण चिन्ह नीलकमल और लक्षण रंग पीला है |22. अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) :
22वें तीर्थकर अरिष्टनेमि का अन्य नाम नेमिनाथ था | इनका वंश यदुवंश था | इनका जन्मस्थान शौरिपुर है | इनके पिता का नाम समुद्रविजय और माँ का नाम शिवा था | इनकी लम्बाई या ऊंचाई 10 धनुष (30 मी.) थी | यें एक हजार वर्ष जीवित रहें | इनका निर्वाण गिरनार पर्वत पर हुआ था | इनका वैराग्य वृक्ष मेषश्रृंग वृक्ष है | इनका लक्षण चिन्ह शंख और लक्षण रंग काला है |जैन परम्परानुसार यादव वंशी राजा अंधक वृष्णी बड़े पुत्र समुद्रविजय (अरिष्टनेमि के पिता) और छोटे पुत्र वसुदेव (हिन्दू देवता श्रीकृष्ण के पिता) थें | इस प्रकार अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण एक-दूसरे के चचेरे भाई थें | अरिष्टनेमि का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है |
जैन परम्परानुसार अरिष्टनेमि का विवाह गिरनार (जूनागढ़) के राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से तय हुआ | जब अरिष्टनेमि विवाह के दिन बारात के साथ राजा उग्रसेन के महल पहुचें तब उनकी नगर एक स्थान पर बंधे बहुत सारे पशुओं पर पड़ी | जब उन्हें यह पता चला कि विवाह में आयें मांसाहारी अतिथियों के लिए इन्हे मारा जायेगा तो उन्हें अत्यंत दुःख हुआ और उनका मन सांसारिक मोह से भंग हो गया | विवाह से मना करके वें गिरनार पर्वत (जूनागढ़, गुजरात) पर तपस्या करने चले गये |
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23. पार्श्वनाथ :
"जिस धर्म में दया न हो वो धर्म नही" एक बार तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने देखा कि कुछ लोग पूजा सामग्री लेकर नगर के बाहर जा रहें है | उन्होंने कारण पता लगाया तो पता चला कि नगर के बाहर एक तपस्वी आया हुआ है | तीर्थंकर भी उत्सुकता पूर्वक उसे देखने चले गयें | उन्होंने वहाँ स्वयं के अवधि-ज्ञान द्वारा देखा कि तपस्वी जहाँ पंचाग्नि जला रहा है उसी में एक बड़ी लकड़ी के अंदर एक नाग भी जल रहा है | ऐसा ज्ञान होने पर उनका हृदय करुणा से भर गया | उन्होंने तपस्वी से पूछा, "धर्म का मूल दया है, यह अग्नि प्रज्वलित करने से किस तरह सम्भव हो सकता है, क्योकि अग्नि प्रज्वलित करने से तो विनाश ही होता है | अहो ! यह कैसा धर्म है कि जिसमे दया न हो |" उनकी बात सुनकर तपस्वी अभिमान के साथ बोला, "धर्म का स्वरूप (रहस्य) आप क्या जानो, यह तो हम तपस्वी ही जानतें है | क्या कोई पंचाग्नि में जल रहा कोई जीव बता सकता है ?" उस अभिमानी तपस्वी की इस प्रकार बातें सुनकर तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने उस पंचाग्नि से लकड़ी को बाहर निकलवाया और जब उसे चीरा गया तो उसमे से जलता हुआ घायल नाग बाहर निकला | इसप्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने उस नाग की रक्षा की | नाग उद्धार की इस घटना ने तीर्थंकर पार्श्वनाथ को वैराग्य की और ले जाने में मदद की थी यद्यपि उस समय उनकी आयु मात्र 16 वर्ष की थी |
तीर्थंकर पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में गृहस्थ जीवन त्यागकर सम्मेद पर्वत (इन्ही के नाम पर इस पर्वत को पार्श्वनाथ पर्वत / पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है) पर तपस्या करने चले गये थे | अपने कठोर तप द्वारा इन्होने कैवल्य (केवल-ज्ञान या परम-ज्ञान) प्राप्त करके जीवनपर्यन्त जनमानस को धर्मोपदेश देते रहे | उन्होंने लोगों को बताया कि सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चरित्र आवरण मुक्ति का सच्चा मार्ग है |
तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अनुयायी निर्ग्रन्थ कहलाते थे | बाद में महावीर स्वामी द्वारा स्थापित संघ के सदस्यों को निर्ग्रन्थ कहा गया | चातुर्याम (चार याम अर्थात् उपाय) तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शिक्षाओं के चार प्रमुख अंग माने जाते है | चातुर्याम में अहिंसा (जीव हिंसा न करना), सत्य (असत्य न बोलना), अस्तेय (चोरी न करना) व अपरिग्रह (सम्पत्ति अर्जित न करना) की शिक्षायें आती है |
भगवतीसूत्र में तीर्थंकर पार्श्वनाथ और तीर्थंकर महावीर स्वामी के अनुयायियों के बीच वाद-विवाद का उल्लेख मिलता है | तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अनुयायी चातुर्याम में ही विश्वास करते थें न कि तीर्थंकर महावीर द्वारा प्रतिपादित पंचमहाव्रत में | उल्लेखनीय है कि कालान्तर में महावीर स्वामी ने चातुर्याम में ब्रह्मचर्य जोड़ दिया था और तब इन्हे पंचमहाव्रत कहा गया |
तीर्थंकर पार्श्वनाथ की लम्बाई 10 हाथ थी और वें 100 वर्ष तक जीवित रहें | इनका निर्वाण 776 ई.पू. में सम्मेद पर्वत पर हुआ था | इनका वैराग्य वृक्ष घव वृक्ष, लक्षण चिन्ह सर्प और लक्षण रंग काला है | इनकें सिर के ऊपर सात सर्पफणों के छत्र के प्रदर्शन का वर्णन मिलता है |
24. महावीर स्वामी :
चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. में वैशाली के पास कुण्डग्राम में हुआ था | इनके बचपन का नाम वर्द्धमान था | इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातृ नामक क्षत्रियकुल के प्रधान और माता त्रिशला, बिम्बिसार के ससुर लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी | इनकी पत्नी का नाम यशोदा और पुत्री अणोज्जा (प्रियदर्शना), का विवाह जामालि से हुआ था |महावीर स्वामी के ज्ञातृ कुल में उत्पन्न होने के कारण बौद्ध निकाय में इन्हे निगण्ठ नातपुत्त (निर्ग्रन्थ ज्ञातृ-पुत्र) कहा गया है | जामालि प्रारम्भ में महावीर स्वामी का शिष्य बना लेकिन मतभेद के कारण उसने ही उनके खिलाफ पहला विद्रोह किया था तथा स्वयं को जिन घोषित कर दिया था | एक अन्य विद्रोह उनके शिष्य मंखलिपुत्र गोशाल ने किया था तथा इनसे अलग होकर उसने आजीवक धर्म की स्थापना करके स्वयं को जिन घोषित कर दिया था |
महावीर स्वामी तीस वर्ष तक सुखी गृहस्थ जीवन बिताया तथा माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् बड़े भाई नन्दिवर्द्धन से आज्ञा लेकर यती (संन्यासी) हो गये | बारह वर्ष की अत्यन्त कठोर तपस्या के बाद बयालीस वर्ष की आयु में जृम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे एक शाल वृक्ष के नीचे कैवल्य (केवल-ज्ञान या मोक्ष या परम-ज्ञान) की प्राप्ति हुई | कैवल्य प्राप्ति के बाद वे महावीर (The Great Spiritual Hero) केवलिन, जिन (जिसने अपनी इन्द्रियों को विजित कर लिया हो, विजेता), अर्हत (योग्य) और निर्ग्रन्थ (बन्धन-रहित) कहलाये |
कहा जाता है कि अपनी बारह वर्ष की घोर तपस्या के दौरान उन्होंने एक बार भी अपने वस्त्र नही बदले और कैवल्य-प्राप्ति के बाद उन्होंने वस्त्र का पूर्ण त्याग कर दिया | ध्यान रहे तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने अपने अनुयायियों को निचले और ऊपरी अंगों को वस्त्र से ढकने की अनुमति दी थी, परन्तु महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को वस्त्र के पूर्णतः त्याग का आदेश दिया था | महावीर स्वामी के अनुयायी जैन कहलाते है | कैवल्य-प्राप्ति के पश्चात् महावीर स्वामी जीवनपर्यन्त अपने सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार करते रहे | उनका निर्वाण 468 ई.पू. में 72 वर्ष की आयु में राजगीर के समीप पावापुरी में हुआ था |
तीर्थंकर महावीर स्वामी की लम्बाई 7 हाथ (6 फीट) थी | इनका वैराग्य वृक्ष शाल वृक्ष, लक्षण चिन्ह सिंह और लक्षण रंग स्वर्ण है |
वर्तमान में जैन धर्म और दर्शन का जो रूप विद्यमान है, उसके प्रवर्तन का प्रमुख श्रेय महावीर स्वामी को ही है | जैन धर्म मुख्यतः महावीर स्वामी के उपदेशों पर ही आधारित है | जैन धर्म के अनुयायी भगवान महावीर स्वामी के जन्मदिन को महावीर-जयंती के रूप में और उनकें निर्वाण के दिन को दीपावली के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनातें है |
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संक्षेप में,
1. ऋषभदेव (आदिनाथ)
जन्मस्थान- अयोध्या, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- नाभिराज माता- मरूदेवी वैराग्य वृक्ष वट-वृक्ष चिन्ह- वृषभ रंग- स्वर्ण निर्वाण स्थल- अष्टापद शिखर
2. अजितनाथ
जन्मस्थान- अयोध्या, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- जितशत्रु, माता- विजया, वैराग्य वृक्ष सप्तपर्ण, चिन्ह- हस्ति, रंग- स्वर्ण निर्वाण स्थल-सम्मेद शिखर
3. सम्भवनाथ
जन्मस्थान- श्रावस्ती, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- जितारि, माता- सेनारानी, वैराग्य वृक्ष शाल, चिन्ह- अश्व, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल-सम्मेद शिखर
4. अभिनन्दननाथ
जन्मस्थान- अयोध्या, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- संवर, माता- सिद्धार्था, वैराग्य वृक्ष- देवदार, चिन्ह- बन्दर, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल-सम्मेद शिखर
5. सुमतिनाथ
जन्मस्थान- अयोध्या, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- मेघरथ, माता- सुमंगला, वैराग्य वृक्ष- प्रियंगु, चिन्ह- चकवा, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल-सम्मेद शिखर
6. पद्मप्रभनाथ
जन्मस्थान- कौशाम्बी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- श्रीधर धरणराज, माता- सुसीमा, वैराग्य वृक्ष- प्रियंगु, चिन्ह- पद्म (कमल), रंग- लाल, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
7. सुपार्श्वनाथ
जन्मस्थान- काशी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- सुप्रतिष्ठि, माता- पृथ्वी, वैराग्य वृक्ष- शिरीष, चिन्ह- स्वास्तिक, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
8. चन्द्रप्रभ
जन्मस्थान- चन्द्रपुरी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- महासेन, माता- लक्ष्मणा, वैराग्य वृक्ष- नाग, चिन्ह- चन्द्रमा, रंग- श्वेत, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
9. पुष्पदन्त (सुविधिनाथ)
जन्मस्थान- काकन्दी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- सुग्रीव, माता- रामा, वैराग्य वृक्ष- मालि (मल्लि), चिन्ह- मगर, रंग- श्वेत, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
10. शीतल नाथ
जन्मस्थान- भद्रिकापुरी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- दृढ़रथ, माता- सुनन्दा, वैराग्य वृक्ष- प्लक्ष, चिन्ह- कल्पवृक्ष, रंग- सुनहरा, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
11. श्रेयांसनाथ
जन्मस्थान- सिंहपुर, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- विष्णु, माता- विष्णा, वैराग्य वृक्ष- तेंदुका, चिन्ह- गैंडा, रंग- सुनहरा, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
12. वासुपूज्य
जन्मस्थान- चम्पापुरी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- वासुपूज्य, माता- जया, वैराग्य वृक्ष- पाटला, चिन्ह- भैंसा, रंग- लाल, निर्वाण स्थल-चम्पापुरी
13. विमलनाथ
जन्मस्थान- काम्पिल, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- कृतवर्मन, माता- श्यामा, वैराग्य वृक्ष- जम्बू, चिन्ह- सुअर, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
14. अनन्तनाथ
जन्मस्थान- अयोध्या, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- सिंहसेन, माता- सुयशा, वैराग्य वृक्ष- पीपल, चिन्ह- सेही, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
15. धर्मनाथ
जन्मस्थान- रत्नपुरी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- भानु, माता- सुव्रता, वैराग्य वृक्ष- दधिपर्ण, चिन्ह- वज्र, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
16. शांतिनाथ
जन्मस्थान- हस्तिनापुर, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- विश्वसेन, माता- ऐराणी, वैराग्य वृक्ष- नन्द, चिन्ह- हिरन, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
17. कुन्थुनाथ
जन्मस्थान- हस्तिनापुर, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- शूर, माता- श्री, वैराग्य वृक्ष- तिलक, चिन्ह- बकरा, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
18. अरहनाथ (अरनाथ)
जन्मस्थान- हस्तिनापुर, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- सुदर्शन, माता- देवी, वैराग्य वृक्ष- आम्र, चिन्ह- मछली, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
19. मल्लिनाथ
जन्मस्थान- मिथिला, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- कुम्भ, माता- प्रभावती, वैराग्य वृक्ष- अशोक, चिन्ह- कलश, रंग- नीला, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
20. मुनिसुव्रतनाथ
जन्मस्थान- राजग्रह, वंश- हरिवंश, पिता- सुमित्र, माता- पद्मावती, वैराग्य वृक्ष- चम्पक, चिन्ह- कछुआ, रंग- काला, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
21. नमिनाथ
जन्मस्थान- मिथिला, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- विजय, माता- वप्रा, वैराग्य वृक्ष- वकुल, चिन्ह- नीलकमल, रंग- पीला, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
22. अरिष्टनेमि (नेमिनाथ)
जन्मस्थान- शौरिपुर, वंश- यदु, पिता- समुद्रविजय, माता- शिवा, वैराग्य वृक्ष- मेषश्रृंग, चिन्ह- शंख, रंग- काला, निर्वाण स्थल-गिरिनार पर्वत
23. पार्श्वनाथ
जन्मस्थान- काशी, वंश- इक्ष्वाकु, पिता- अश्वसेन, माता- वामादेवी, वैराग्य वृक्ष- घव, चिन्ह- सर्प, रंग- काला, निर्वाण स्थल- सम्मेद शिखर
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➽ अवसर को मत खोइए
24. महावीर स्वामी
जन्मस्थान- कुण्डग्राम, वंश- ज्ञातृ, पिता- सिद्धार्थ, माता- त्रिशला, पत्नी- यशोदा, पुत्री- अणोज्जा (प्रियदर्शना), दामाद- जामालि, वैराग्य वृक्ष- शाल, चिन्ह- सिंह, रंग- स्वर्ण, निर्वाण स्थल- पावापुरी
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अति उत्तम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंKya inki height sach m itni thi unbelievable
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