जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

जैन धर्म के धर्मोपदेशक तीर्थंकर या जिन कहलाते हैं | जैन शब्द की उत्पत्ति जिन शब्द से हुई है | जिन शब्द संस्कृत की जि धातु से बना है, जि अर्थ है – जीतना , इसप्रकार जिन का अर्थ हुआ विजेता या जीतने वाला और जैन धर्म का अर्थ हुआ विजेताओं का धर्म | जैन धर्म के अनुसार जिन वें हैं जिन्होंने अपने निम्नकोटि के स्वभाव या मनोवेगों पर विजय प्राप्त करके स्वयं को वश में कर लिया हो | दूसरे शब्दों में जिन वें हैं जिन्होंने समस्त मानवीय वासनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है | जिन के अनुयायी जैन कहलाते है | तीर्थंकर का अर्थ है मोक्ष मार्ग के संस्थापक | जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है, जिनमे केवल तेइसवें और चौबीसवें तीर्थंकर की ही ऐतिहासिकता सिद्ध हो पाती है | जैन धर्म जरुर पढ़ें, टच करें- ➽  ब्राह्मण विरोधी राजनीति के प्रतीक करुणानिधि से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार है - 1. ऋषभदेव (आदिनाथ), 2. अजितनाथ, 3. सम्भवनाथ, 4. अभिनन्दननाथ, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभनाथ, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. च...

ब्राह्मण विरोधी राजनीति के प्रतीक करुणानिधि से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य

दक्षिण भारत में द्रविड़ अस्मिता की आवाज बुलंद करने वाले मुथुवेल करुणानिधि (Muthuvel Karunanidhi) ब्राह्मण विरोधी राजनीति के प्रतीक के रूप में विख्यात थे | एक कामयाब राजनेता, लेखक, पत्रकार, विचारक, कवि, प्रकाशक, वक्ता, कार्टूनिस्ट और अपने प्रशंसकों के बीच कलइगनर (कला का विद्वान) के रूप में प्रसिद्ध मुथुवेल करुणानिधि पांच दशकों तक तमिल राजनीति के केन्द्र बने रहें | 5 बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधायक बनने वाले करुणानिधि ने 60 साल के अपने राजनीतिक जीवन में कभी भी चुनाव न हार कर अपनी भागीदारी वाले हर इलेक्शन में अपनी सीट जीतने का रिकार्ड बनाया | मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में राजनीतिक सफर शुरू करने वाले और 50 वर्षों तक पार्टी अध्यक्ष के पद पर बने रहने वाले एम. करुणानिधि 07 अगस्त 2018 को चेन्नई (तमिलनाडु) में 94 वर्ष की आयु में इस संसार से विदा हो गये | प्रस्तुत है मुथुवेल करुणानिधि के जीवन से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य |
 
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मुथुवेल करुणानिधि 03.06.1924 - 07.08.2018


मुथुवेल करुणानिधि से जुड़े 15 महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य 

Muthuvel Karunanidhi Interesting Facts in Hindi


1. आरम्भिक जीवन : मुथुवेल करुणानिधि (Muthuvel Karunanidhi) का जन्म 3 जून 1924 को ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुक्कुवलई (नागपट्टीनम जिले) में हुआ था | इनके पिता का नाम मुथुवेल और माता का नाम अंजुगम था | इनका सम्बन्ध ईसाई वेल्लालर समुदाय से था | इनका बचपन का नाम दक्षिणमूर्ति था | इनका परिवार परम्परागत वाद्ययंत्र 'नादस्वरम' बजाने का कार्य करता था | 

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2. परिवार परिचय : इन्होंने तीन बार विवाह किया था | 1944 में इनका पहला विवाह पद्मावती से हुआ था | दूसरा विवाह 1948 ही दयालु अम्माल से हुआ | इनका तीसरा विवाह राजथी अम्माल से हुआ था | पद्मावती की मृत्यु 1948 में हो गयी, जबकि अन्य दोनों पत्नियाँ जीवित है | करूणानिधि के 4 पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं | एम.के. मुथू (M.K. Muthu) की माँ पद्मावती थी, एम.के. अलागिरी (M.K. Alagiri), एम.के. स्टालिन (M.K. Stalin), एम.के. तमिलरासू (M.K. Tamilarasu), और पुत्री एम.के. सेल्वी (M.K. Selvi) की माँ दयालु अम्माल हैं जबकि दूसरी पुत्री कनिमोझी (Kanimozhi) की माँ राजथी अम्माल हैं |       

3. राजनीति में प्रवेश : करुणानिधि ने मात्र 14 वर्ष में ही राजनीति में कदम रख दिया था | जस्टिस पार्टी (Justice Party) के अलगिरिस्वामी (alagiriswamii) के भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने हिन्दी भाषा विरोधी आन्दोलनों (Anti Hindi Agitations) के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया | 1937 में स्कूलों में हिन्दी को अनिवार्य किये जाने पर दक्षिण भारत में इसका विरोध किया गया था | उन्होंने 'तमिल स्टूडेंट फोरम' नाम से द्रविड़ राजनीति के एक छात्र-संगठन का भी निर्माण किया था |

4. कभी भी कोई चुनाव नही हारे : करूणानिधि 60 साल के अपने बेहतरीन राजनीतिक सफर में कभी भी कोई चुनाव नही हारे | उन्होंने अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकार्ड स्थापित किया | जिस सीट पर भी वें चुनाव लड़ने के लिए खड़े हो जाते थे उस सीट पर उनके विरोधियों की हार निश्चित हो जाती थी |

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5. पांच बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधायक बने : करुणानिधि बेहद कामयाब व लोकप्रिय राजनीतिज्ञ थे | वे 12 बार विधायक चुने गये गये | उन्होंने पहली बार 1957 में तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा की सीट पर विजय हासिल की थी | 1969 में अन्नादुरई की कैंसर से मृत्यु के बाद उनकों सत्ता मिली और वे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे | इसके बाद वें 1971, 1989, 1996 और 2006 में मुख्यमंत्री चुने गये |

6. अहम और साहसी निर्णय लिए : करुणानिधि ने अपने कार्यकाल में कई अहम और साहसी फैसले लिए थे | उनकी सरकार ने सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किये थे | सरकार ने कानून बनाकर सभी जातियों के लोगों के लिए मन्दिर का पुजारी बनने का रास्ता साफ करके मंदिरों पर ब्राह्मणों के एकाधिकार को समाप्त कर दिया | सरकार ने कानून बनाया कि कोई भी व्यक्ति 15 एकड़ से ज्यादा भूमि का मालिक नही बन सकता था |

उनकी सरकार ने पुत्रियों को भी पिता की सम्पत्ति में पुत्रों के समान बराबर का हिस्सा दिलाने के लिए कानून बनाया | उनकी सरकार ने शिक्षा और नौकरी में पिछड़ी जाति को मिलने वाले आरक्षण को संशोधित करके इसे 25% से बढ़ाकर 31% कर दिया था और इसके अलावा सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30% का आरक्षण भी दिया | स्थानीय निकायों में भी उनकी सरकार ने महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिलाया | उनकी सरकार ने पिछड़ों में अतिपिछड़ा वर्ग बनाकर शिक्षा व नौकरी में 20% आरक्षण अलग (पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति व जनजाति कोटे से अलग) से दिया |

उनकी सरकार ने सभी सरकारी और स्कूली कार्यक्रमों के प्रारम्भ में तमिल राजगीत गाना अनिवार्य कर दिया जबकि इसके पूर्व धार्मिक गीतों से इन कार्यक्रमों की शुरुआत होती थी | सरकार ने लोगों को सरकारी राशन की दुकानों से मात्र एक रूपये प्रति किलो चावल उपलब्ध कराया | सरकार ने हाथ द्वारा खींचे जाने वाले रिक्शे पर पाबंदी लगाई | आम लोगों के लिए निशुल्क स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की | गरीब दलितों को निशुल्क आवास उपलब्ध कराएं |

उनकी सरकार ने ही चेन्नई में मेट्रो ट्रेन सेवा शुरू करवाई थी | करुणानिधि ने राज्यों की स्वायत्तता के लिए भी संघर्ष किया | करुणानिधि के लगातार संघर्ष के परिणामस्वरूप ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों को स्वतंत्रता दिवस पर अपने राज्य में झंडा फहराने का हक प्राप्त हो सका |

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सरकार ने सामाजिक और जातीय भेदभाव को दूर करने लिए अत्यधिक प्रयास किये | एक ऐसा ही प्रयास समथुवापुरम नाम की योजना थी | सरकार ने 'समथुवापुरम' (समानता गाँव) नाम से मॉडल हाउसिंग स्कीम की शुरुआत की जिसके तहत दलित जाति (अनुसूचित जाति) और ऊंची जाति (सवर्ण) के हिन्दुओं के लिए कॉलोनियां बनाई गयी और उन्हें यहाँ इस शर्त पर निशुल्क घर दिए गये कि वें बिना किसी भेदभाव के और जातीय भावना से मुक्त होकर साथ-साथ रहेंगें | समथुवापुरम योजना के तहत बनी इन कालोनियों में दलित व सवर्ण हिन्दुओं को मकान अगल बगल दिए गये थे |            

7. 50 साल तक पार्टी अध्यक्ष रहे : द्रविड़ राजनीतिज्ञ करुणानिधि में असाधारण संगठनकर्ता की क्षमता थी | उन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी पार्टी को समर्पित कर दिया था | वे लगातार 50 वर्षों तक द्रमुक (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम - Dravida Munnetra Kazhagam - DMK) के अध्यक्ष बनकर इसका मार्गदर्शन करते रहे | 1968 में द्रमुक पार्टी के अध्यक्ष बनने के बाद करूणानिधि ने 2018 को अध्यक्ष पद के 50 वर्ष पूरे किये |

करुणानिधि अपनी पार्टी को अपने परिवार से ज्यादा महत्व देतें थे | पार्टी के प्रति उनकी वफादारी इतनी अधिक थी कि जब उनकी पहली पत्नी पद्मावती मृत्यु के अत्यधिक करीब थी तब वें उन्हें छोड़कर पार्टी की मीटिंग में हिस्सा लेने चले गये थें | करूणानिधि अपने कार्यकर्ताओं से रोज मुलाकात करते थे | इसके अलावा 50 वर्षों तक (जब तक कि वें अत्यंत बुजुर्ग नही हो गये) वें अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को नियमित रूप से रोज चिट्टी भी लिखा करते थें |
  
8. हमेशा काला चश्मा और पीला शाल पहनते करते थे : वैसे तो करुणानिधि महान सामाजिक सुधारवादी पेरियार और अन्नादुराई की भांति ब्राह्मणवाद और अंधविश्वास के विरोधी थें | लेकिन सम्भवतः उन्हें भी एक अंधविश्वास ने जकड़ रखा था | वें हमेशा काला चश्मा और पीला शाल पहने हुए दिखाई देते थें | अपने पूरे जीवन में परम्परागत धार्मिक मान्यताओं का बहिष्कार करने वाले करूणानिधि पर आरोप लगाया जाता है कि वें बृहस्पति ग्रह की शांति के लिए पीला शाल धारण करते थे | उन्हें योग बहुत पसंद था और अत्यधिक उम्र होने के बावजूद वें नियमित रूप से योग किया करते थे | उनका कहना था कि प्रतिदिन योगाभ्यास से उन्हें ऊर्जा और सफलता प्राप्त होती है | पहले वें मांसाहारी थें लेकिन बाद में उन्होंने मांस खाना भी छोड़ दिया और पूर्णतः शाकाहारी बन गये थें |

9. लिट्टे का समर्थन : कुछ लोग करूणानिधि पर लिट्टे (Liberation Tigers of Tamil Eelam - LTTE) का समर्थक होने का भी आरोप लगाते है | जस्टिस जैन कमिशन (पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या की जाँच करने वाला कमिशन) ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में उन पर लिट्टे (एल.टी.टी.ई.) को समर्थन देने का आरोप लगाया था | लेकिन जस्टिस जैन कमिशन की अंतिम रिपोर्ट में ऐसा कोई आरोप देखने को नही मिला था |

10. कामयाब लेखक व प्रकाशक :करूणानिधि ने तमिल साहित्य में भी खूब योगदान दिया | उन्होंने अनेक पटकथाएं, नाटक, संवाद, उपन्यास, निबन्ध, कवितायेँ, गाने, चिट्ठियां आदि लिखी | करुणानिधि ने 100 से अधिक पुस्तकों की रचना की थी | उनकी लेखन क्षमता गजब की थी | उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में 2 लाख से ज्यादा पन्ने लिखे थें | 

11. पुश्तैनी घर को बनाया संग्रहालय : करूणानिधि ने अपने जीवनकाल में ही अपना घर दान कर दिया था | उनकी इच्छानुसार उनके पुश्तैनी घर को गरीब लोगों के लिए अस्पताल के रूप में परिवर्तित कर दिया जायेगा | उनका जन्म भी इसी घर में हुआ था | यहाँ कई मशहूर हस्तियों की तस्वीरें लगी है जिनमें पोप और इंदिरा गाँधी भी शामिल है |

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12. पटकथा लेखक : करुणानिधि तमिल सिनेमा जगत के पटकथा लेखक और नाटककार भी रहे थे | उन्होंने मात्र 20 वर्ष की आयु में ही ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए पटकथा लेखन का कार्य आरम्भ किया था | उन्होंने अपनी पहली ही फिल्म 'राजकुमारी' से पटकथा लेखक के रूप में लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी | उन्होंने 75 पटकथाएं लिखी थी | वें अपनी पटकथा के माध्यम से धार्मिक कट्टरता, छुआछूत, अंधविश्वास, जातिवाद, जमींदारी प्रथा आदि के खिलाफ सवाल उठाते थें और 'द्रविड़ अस्मिता' की आवाज बुलंद करते थे |  

13. विवादास्पद बयान : करुणानिधि के कई बयानों ने विवादों को जन्म दिया था | एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि वें रामायण के आलोचक रहें है और भविष्य में भी इसका विरोध करते रहेंगे | सेतुसमुद्रम के मुद्दे पर उन्होंने हिन्दू देवता राम के वजूद पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था | उन्होंने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था, कि 
"कुछ लोग कहते है कि 17 लाख वर्ष पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था | उस पुल (रामसेतु) को न छुओं जिसको राम ने बनाया था | ये राम कौन हैं ? वें किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट थें ? क्या इसका कोई सबूत है ?" 
एक बार करूणानिधि ने कहा था कि प्रभाकरण (लिट्टे का प्रमुख) उनका अच्छा दोस्त है |

14. सम्पादक और प्रकाशक : करुणानिधि ने अनेक समाचार पत्र और पत्रिकाओं का सम्पादन और प्रकाशन भी किया | उनकी लेखन शैली और प्रभावशाली भाषणों को देखकर पेरियार और अन्नादुराई ने उन्हें 'कुदियारासु' के सम्पादन का कार्य सौप दिया था | उन्होंने 'मुरासोली' (murasoli) नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया था, यही समाचार पत्र बाद में द्रमुक (डीएमके) का मुखपत्र बना और जो आज भी प्रकाशित हो रहा है | मुरोसोली में उन्होंने उडानपिराप्पे (ओह! भाई...) नामक एक लम्बी सिरीज लिखी, जो किसी भी समाचार पत्र में सर्वाधिक लम्बे समय तक चली सिरीज थी |

15. जयललिता से राजनीतिक शत्रुता : तमिल सिनेमा जगत से सम्बन्धित होने के कारण करुणानिधि तमिल अभिनेता मारुदुर गोपालन रामचंद्रन, जो एमजीआर (MGR) के नाम से प्रसिद्ध थें, के नजदीक आयें | करूणानिधि के लिखे प्रभावशाली संवादों ने एमजीआर को खूब वाहवाही प्रदान की | दोनों की जोड़ी जबरदस्त जमी लेकिन राजनीतिक मतभेदों के कारण दोनों की दोस्ती टूट गयी और एमजीआर ने द्रमुक से अलग होकर ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam - AIADMK), जिसका लोकप्रिय नाम अन्नाद्रमुक है, नाम से एक अलग राजनीतिक दल बना लिया | एमजीआर की विरासत जयललिता जयराम (24.02.1948 - 05.12.2016) ने सम्भाली | करुणानिधि और जयललिता के बीच कई बार घोर राजनीतिक शत्रुता देखने को मिली | जहाँ 1996 में करुणानिधि ने जयललिता के घर पर छापा डलवा कर उन्हें जेल भिजवाया था वही 2001 में जयललिता ने भी करुणानिधि को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार करवाकर बदला लिया था |

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